2021, Vol. 3, Issue 3, Part C
प्राक् मौर्यकालीन साम्राज्यवाद का आर्थिक स्थिति पर प्रभाव
Author(s): डॉ. पूनम कुमारी
Abstract: उत्तर भारत में मगध के नेतृत्व में जो साम्राज्यवाद की लहर चली उसके कारण भारत में एक राजनीतिक एकता की भावना विकसित हुई। वहीं दूसरी ओर पश्चिमोत्तर प्रांत जो राजनीतिक एकता से कोसों दूर था वहाँ सिकंदर के आक्रमण के फलस्वरूप तलवार के बल पर एक अस्थायी राजनीतिक एकता बनी। यह राजनीतिक एकता अंततः भारत में आर्थिक स्थितियों के लिये हितकर साबित हुई। राजनीतिक एकता कायम होने का सबसे बड़ा प्रभाव व्यापारियों पर पड़ा। बहुत सारे छोटे-छोटे राज्य होने के कारण उन्हें हर राज्य की सीमा पर वाणिज्यिक कर की अदायगी करनी पड़ती थी। कर के रूप में भारी रकमों की अदायगी करने के कारण उन्हें इसकी भरपाई अपने वस्तुओं के मूल्य बढ़ाकर करनी पड़ती थी। वस्तुओं के मूल्य बढ़ाये जाने पर उसकी बिक्री प्रभावित होती थी। इसका असर अंततः उत्पादन पर पड़ता था। विच्छृखलित भारत में व्यापार एवं व्यापारियों को किस प्रकार दोहरी मार का सामना करना पड़ता था इसे बस एक उदाहरण से समझा जा सकता है। वणिज्ण गणतंत्र एवं मगध के बीच गंगा नदी बहती थी। दोनों जनपद इस नदी पर अपना अधिकार जताते थे एवं दोनों ही के द्वारा गंगा नदी से होकर गुजरनेवाले व्यापारियों से कर की वसूली की जाती थी। जाहिर है कि इस तरह कदम-कदम पर दोहरी मार पड़ने के कारण व्यापार के क्षेत्र में लोग उतरने में कतराते थे। इसका असर उन कारीगरों पर पड़ता था जो तरह-तरह के माल तैयार किया करते थे। प्राक् मौर्यकाल में जनपदों के एकीकरण की चली लहर ने उद्योग-धंधों एवं वाणिज्य-व्यापार के लिये एक सकारात्मक उत्साहजनक वातावरण तैयार किया जिसका सशक्त प्रभाव अंततः नगरीकरण पर पड़ा।
DOI: 10.33545/27068919.2021.v3.i3c.603Pages: 214-216 | Views: 672 | Downloads: 192Download Full Article: Click Here
How to cite this article:
डॉ. पूनम कुमारी.
प्राक् मौर्यकालीन साम्राज्यवाद का आर्थिक स्थिति पर प्रभाव. Int J Adv Acad Stud 2021;3(3):214-216. DOI:
10.33545/27068919.2021.v3.i3c.603