Abstract: कामकाजी महिलाएँ जो घरों के बाहर नियमित रूप से आर्थिक या व्यवसायिक गतिविधियों में व्यस्त रहती है काम (श्रम करने वाले स्वयं श्रम करना ही नही, वरन दूसरे व्यक्तियों से काम लेना तथा उनके कार्य की निगरानी करना एवं निर्देशन आदि देना भी सम्मिलित है। आज के भौतिकवादी परिवेश में हर महिला का श्रमजीवी होना एक अनिवार्यता बन गयी है। घर की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये पति और पत्नी दोनों का ही कार्य करना आवश्यक हो गया है जिससे पत्नी की परम्परागत प्रस्थिति एवं भूमिका में परिवर्तन आये हैं घर के बाहर काम करने के कारण पत्नी को घर और बाहर दोनों ही क्षेत्रों की भूमिकाओं का निर्वहन करना पड़ता है। इस तरह दोहरी भूमिका को निभाने में उसकी शक्ति और समय खर्च दोनों होता है और इसका परिणाम यह होता है कि पारिवारिक संबंधों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। गृह कार्य के लिये समय का अभाव होता है। एक ही समय में घर की व्यवस्था करना और नौकरी पर जाने की तैयारी करना आसानी से सम्भव नहीं है। महिलाएं अपने पति को स्वामी न मान कर एक मित्र की भांति मानने की भावना इन महिलाओं में परिलक्षित होती है। इस कारण श्रमजीवी महिलाओं के दाम्पत्य जीवन के साथ ही परिवारों में तनाव की स्थिति प्रारंभ हो जाती है।