प्रेमचन्द के साहित्य में सामाजिक जागृति का विवेचन
Author(s): चन्दीर पासवान
Abstract: प्रेमचन्द आदर्शवादी रचनाकार रहे हैं, परन्तु बितते समय के झंझावात ने यथार्थवादी बना दिया। वे समाज में घटीत हो रही हर-एक घटनाओं को रू-ब-रू उद्घाटित कर अपना साहित्यिक उत्तरदायित्व का निर्वाह करने लगे। उन्होंने मुख्य रूप से समाज को दो वर्गों में बाँटा एक शोषक वर्ग दूसरा शोषित वर्ग शोषकों के प्रति नफरत एवं शोषितों के प्रति सहानुभूति का भाव का वर्णन किया।
इस भाग्यवादी समाज में स्त्री को देवी का दर्जा दिया जाता है, वहीं भोगवादी प्रवृत्ति वाले समाज में स्त्री को भोग की वस्तु ही समझ जाता है। परंतु प्रेमचन्द जी वेश्या को भी उस नारकिय स्थितियों, परिस्थितियों और स्थानों से मुक्ति हेतु रचना करते हैं, तभी तो कोकिला खुद वेश्यावृति में होते हुए अपनी पुत्री को उस कुत्सित वातावरण का छाया तक लगने देना नहीं चाहती। यह संदर्भ नारी जागरूकता और नारी शक्तिकरण को दर्शाता है।
प्रेमचन्द जी अपनी व्यापक दृष्टि के कारण भारत का गाँव से लेकर शहर का ऐसा वर्णन करने में सफल हुए हैं, जिसे विश्व पटल पर भारतीय सभ्यता, संस्कृति, संस्कार, किसान-मजदूर आदि को दिखाने के लिए प्रेमचन्द जी के साहित्य को ही दर्पण के रूप में दिखाया जाता है।
DOI: 10.33545/27068919.2020.v2.i3c.148Pages: 194-195 | Views: 959 | Downloads: 420Download Full Article: Click HereHow to cite this article:
चन्दीर पासवान.
प्रेमचन्द के साहित्य में सामाजिक जागृति का विवेचन. Int J Adv Acad Stud 2020;2(3):194-195. DOI:
10.33545/27068919.2020.v2.i3c.148