2020, Vol. 2, Issue 1, Part F
काशीनाथ सिंह के उपन्यासों में एकल परिवारः घुटन, संत्रास का आधार
Author(s): सुधा कुमारी
Abstract: यद्यपि भारत में एकल परिवार का प्रचलन संयुक्त परिवार से अधिक होता जा रहा है जिसके विविध कारण हैं तथापि व्यक्तिपरक चरित्रा में वृद्धि एकल परिवार की बढ़ती प्रवृत्ति का परिणाम है न कि कारण। भारत की परंपरागत परिवार व्यवस्था में संरचनात्मक तथा कार्यात्मक दोनों प्रकार के परिवर्तन हुए हैं। भारत की संयुक्त परिवार व्यवस्था कई कारणों से बाधित हुई है। अंग्रेजों के आगमन से उनके साथ लाए गए नए आर्थिक संगठनोंए विचारधाराओं तथा प्रशासनिक प्रणालियों के कारण सांस्कृतिक स्वरूप में परिवर्तन अवश्यंभावी था।
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के उदय तथा उदारवाद के प्रसार ने संयुक्त परिवार की भावनाओं के समक्ष चुनौती पेश की। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में संचार के तीव्र साधनों के चलते देश के दूरस्थ हिस्से भी एक.दूसरे के निकट आए। ग्रामीण अर्थव्यवस्था आत्मनिर्भर रहने के बजाय अधिक बाजारोन्मुख होती जा रही थी तथा नगरों का उदय हो रहा था। पाश्चात्य शिक्षा नौकरशाही संगठन का परिपालन करती थी। इन परिवर्तनों ने परंपरागत संयुक्त व्यवस्था को प्रभावित किया।
DOI: 10.33545/27068919.2020.v2.i1f.403Pages: 312-315 | Views: 2193 | Downloads: 1329Download Full Article: Click Here
How to cite this article:
सुधा कुमारी.
काशीनाथ सिंह के उपन्यासों में एकल परिवारः घुटन, संत्रास का आधार. Int J Adv Acad Stud 2020;2(1):312-315. DOI:
10.33545/27068919.2020.v2.i1f.403