डाॅ. उषा किरण खानः उपन्यासों में ‘‘वर्णित समाज’’
Author(s): शम्भू पासवान
Abstract: साहित्य और इतिहास एक-दूसरे के विरोधाभासी नहंी है, बल्कि पूरक हैं। साहित्य का एक ऐतिहासिक पक्ष होता है, तो दूसरा राजनीतिक पक्ष भी होता है। डाॅ0 उषा किरण खान के कई उपन्यास हैं, जिसमें साहित्यिक भूमिका तो निभाती ही है, साथ में सामाजिक भूमिका अधिक है, जिसका सारांश में प्रस्तुत कर रहा हूँ। ‘अगन हिंडोला’ इन्हीं दो पक्षों का समेकित प्रयास है। सूरी साम्राज्य के संस्थापक शेरशाह को केन्द्रबिन्दु में रखकर लिखा गया उपन्यास है। इसके माध्यम से मध्यकालीन भारतीय समाज की संरचना, आर्थिक-सांस्कृतिक और राजनैतिक पक्ष को उद्घाटित किया गया है। ‘फागुन के बाद’ में मौसम में बदलाव के साथ मानवीय जीवन के बदलते घटनाक्रम को विस्तृत और वैचारिक आग्रह के साथ प्रस्तुत किया है। ‘‘सिरजनहार’ में विद्यापति को सम्पूर्णता से खोजने का प्रयास किया गया है, क्योंकि लेखिका का लगाव उसी मिथिला की भूमि से है। ‘भामती’ में मिथिला के लोक जीवन, इतिहास, क्षेत्रीय विशेषताओं, सामाजिक-राजनैतिक जीवन के साथ ही सम्पूर्ण सांस्कृतिक विरासत को उद्घाटित करती है। हाल ही में प्रकाशित उपन्यास ‘गई झुलनी टूट’ में ग्रामीण लोक के बनते-बिगड़ते सम्बन्ध, नारी-मन की व्यथा और पंचायतीराज के ताने-बाने का रेखांकन है। ग्रामीण-जीवन को उकेरता यह उपन्यास है।
Pages: 228-230 | Views: 328 | Downloads: 119Download Full Article: Click HereHow to cite this article:
शम्भू पासवान. डाॅ. उषा किरण खानः उपन्यासों में ‘‘वर्णित समाज’’. Int J Adv Acad Stud 2020;2(1):228-230.