International Journal of Advanced Academic Studies
  • Printed Journal
  • Refereed Journal
  • Peer Reviewed Journal

2019, Vol. 1, Issue 2, Part C

तुलसी दास की दोहावली का नैतिक मूल्यांकन


Author(s): संगीता कुमारी झा

Abstract: हिन्दी साहित्य का भक्तिकाल नीतिकाव्य का स्वर्णकाल था। हिन्दी के सम्पूर्ण नीति-काव्य में तुलसी का एक विषिष्ट स्थान है और इस स्थान का प्रधान उनके द्वारा विचरित दोहावली है। दोहावली में विविध-विषयक दोहे है। दोहावली के अन्तर्गत कवि ने नीति, भक्ति, राम-महिमा, राम के प्रति चातक के आदर्ष प्रेम तथा आत्मविषयक-उक्तियों का हृदयग्राही चित्रण किया है तत्कालीन परिस्थितियों के ध्यान में रखकर कलियुग का सुन्दर वर्णन किया है। यद्यपि सभी दोहों के मूल रूप में नैतिक तत्व को विषेष ध्यान में रखा गया है। यह कृति एक भक्ति-नीतिकाव्य है। इसमें अनुभूतियों की सरसता तथा अभिव्यक्ति की बंकिमता के दर्षन आद्यन्त है। यह ग्रन्थ तुलसीदास के व्यापक जीवनानुभव से सम्पन्न एक प्रौढ़ कृति है जिसका क्षेत्र अत्यन्त विषद् है। वेदमूलक भारतीय संस्कृति की महता की रक्षा, परम्परानुगत भक्ति भावना का प्रतिपादन, शुद्धाचार नीति, समाज-समीक्षा जैसे अनेक महत्वपूर्ण तत्व-बिन्दुओं के प्रभावी स्पर्ष से युक्त होने के कारण यह कृति ‘मानस विनयपत्रिका’, कवितावली और गीतावली के बाद तुलसीदास की सर्वाधिक उत्कृष्ट एवं महत्वपूर्ण कृति है। तुलसीदास ने दोहावली में नैतिकमूल्य के द्वारा समाज-समीक्षा की है।

DOI: 10.33545/27068919.2019.v1.i2c.372

Pages: 214-216 | Views: 4573 | Downloads: 2893

Download Full Article: Click Here
How to cite this article:
संगीता कुमारी झा. तुलसी दास की दोहावली का नैतिक मूल्यांकन. Int J Adv Acad Stud 2019;1(2):214-216. DOI: 10.33545/27068919.2019.v1.i2c.372
International Journal of Advanced Academic Studies
Call for book chapter
Journals List Click Here Research Journals Research Journals