2025, Vol. 7, Issue 8, Part A
विनोद कुमार शुक्ल के साहित्य में पर्यावरण चेतना
Author(s): शिवानी कुशवाहा
Abstract: विनोद कुमार शुक्ल एक बड़े रचनाकार हैं बड़ा रचनाकार वह होता है जो अपने समय की सबसे गंभीर समस्याओं से टकराता है, उनकी मीमांसा करता है साथ ही वह उस संकट से निकलने का रास्ता भी सुझाता है। आज के समय में पर्यावरण संकट नामक ऐसा ही एक संकट मानव जाति के समक्ष मुँह बाए खड़ा है ऐसे में अपने काल का एक बड़ा रचनाकार क्या किसी ऐसे संकट से आँखें मूदकर निरपेक्ष रह सकता है जिसमें इतनी क्षमता हो कि वह सम्पूर्ण मानव जाति का अस्तित्व मिटा दे? बिल्कुल नहीं रह सकता विनोद कुमार शुक्ल जी का नाम लेते ही सभी के जेहन में ‘नौकर की कमीज’ (उपन्यास) और ‘वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहिनकर विचार की तरह’ (कविता-संग्रह) कौंध जाता है। कुछ अन्य पाठकों के मन में ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ (उपन्यास) और ‘महाविद्यालय’ (कहानी-संग्रह) का नाम भी उभर आता है उपर्युक्त उपन्यास, कहानी और कविता संग्रह प्रायः निम्नमध्यवर्गीय समाज से सम्बद्ध है, यही कारण है कि शुक्ल जी की रचनाओं को प्रायः निम्नमध्यवर्गीय समाज और निम्नमध्यवर्गीय चेतना से जोड़कर देखा जाता है लेकिन उन्होंने निम्नमध्यवर्गीय समाज के दायरे से बाहर निकलकर भी बहुत कुछ लिखा है उसी में से एक तत्त्व है ‘पर्यावरण चेतना’।
DOI: 10.33545/27068919.2025.v7.i8a.1607Pages: 40-43 | Views: 632 | Downloads: 129Download Full Article: Click Here