2025, Vol. 7, Issue 7, Part B
मृणाल पाण्डे के साहित्य में परिवार सामाजिक नियंत्रण के साधान
Author(s): रजनी रानी
Abstract: परिवार समाज की आधारभूत इकाई है। सामाजिक संस्था मे परिवार का स्थान सर्वोपरि माना जा सकता है। यह समाज की मौलिक सार्वभौमिक तथा प्रमुख संस्था है। समाज को विस्तृत तथा जीवित रखने का कार्य परिवार द्वारा ही संभव है। अगर कहा जाए कि परिवार ही समाज को अमरत्व प्रदान करता है तो कोई अतिश्योकित न होगी। ‘परिवार’ शब्द के बारे में विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने मत प्रस्तुत किये।
1. जुकरमैन के अनुसार - एक परिवार, समूह, पुरूष स्वामी, उसकी स्त्री या स्त्रियों और उनके बच्चों से मिलकर समाज बनता है और कभी-कभी इसमें एक या अधिक अविवाहित पुरूष भी सम्मिलित रहते हैं।1
2. वर्गीस तथा लाॅक का कथन - एक परिवार उन व्यक्तियों का समूह है जो विवाह, रूधिर अथवा गोद लेने के सम्बन्धों में एक दूसरे से बंधे रहते है, जो एक गृहस्थी का निर्माण करते हैं, एक दूसरे के साथ अन्तः क्रिया और अन्तः संचार करते रहते है जो एक सामान्य संस्कृति का निर्माण करते हैं जो पति-पत्नी, माता-पिता, पुत्र-स्त्री और भाई-बहन की निजी सामाजिक भूमिका में, एक दूसरे के साथ अन्तःक्रिया और अन्तः संचार करते रहते हैं और जो एक सामान्य संस्कृति का निर्माण करते हैं तथा उसे बनाए रखते हैं।’’2
आर्गबन तथा निमकाॅफ ने बतलाया कि संतान सहित तथा संतान रहित पति-पत्नी की समिति को या संतान सहित स्त्री या संतान सहित पुरूष की थोड़ी बहुत समिति को परिवार कहते है।3
DOI: 10.33545/27068919.2025.v7.i7b.1553Pages: 87-89 | Views: 987 | Downloads: 182Download Full Article: Click Here
How to cite this article:
रजनी रानी.
मृणाल पाण्डे के साहित्य में परिवार सामाजिक नियंत्रण के साधान. Int J Adv Acad Stud 2025;7(7):87-89. DOI:
10.33545/27068919.2025.v7.i7b.1553