2025, Vol. 7, Issue 7, Part B
कबीर की वाणी और आधुनिक सामाजिक विमर्श (दलित विमर्श/स्त्री विमर्श) का संबंध
Author(s): राजेश कुमार
Abstract: कबीर, मध्यकालीन भारतीय संत काव्य परंपरा के ऐसे विलक्षण कवि हैं, जिन्होंने सामाजिक अन्याय, धार्मिक आडंबर और जातिवादी विभाजन के विरुद्ध निर्भीक स्वर में अपनी बात कही। उनकी वाणी में न केवल अध्यात्मिक गहराई है, बल्कि सामाजिक चेतना और विद्रोह का भी तीव्र स्वर उपस्थित है। यही कारण है कि कबीर की वाणी आज के दलित विमर्श और स्त्री विमर्श जैसे आधुनिक सामाजिक आंदोलनों के वैचारिक संदर्भ में अत्यंत प्रासंगिक प्रतीत होती है। यह शोध-सारांश इस विचार की पड़ताल करता है कि कबीर की कविताएँ और कथन किस प्रकार समकालीन दलित अस्मिता, सामाजिक न्याय और स्त्री चेतना के मूलभूत तत्त्वों के साथ मेल खाते हैं। कबीर ने जातिगत भेदभाव को खुलकर नकारा और कर्म को व्यक्ति की वास्तविक पहचान माना, जो आज के दलित विमर्श का केंद्रीय आधार है। उनकी यह दृष्टि सामाजिक समता की मांग करने वाले आधुनिक विमर्शों को ऐतिहासिक गहराई प्रदान करती है। स्त्री के प्रति उनके दृष्टिकोण में यद्यपि कुछ विरोधाभास पाए जाते हैं, परंतु उन्होंने स्त्री को भी अनेक बार मानवीय गरिमा और समान अधिकारों के स्तर पर प्रस्तुत किया, जो स्त्री विमर्श से उनका आंतरिक संबंध स्थापित करता है। अतः यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि कबीर की वाणी केवल धार्मिक भक्ति तक सीमित न होकर आधुनिक सामाजिक पुनर्रचना की सोच में भी सहायक सिद्ध हो सकती है। सामाजिक समानता, अस्मिता और न्याय के लिए जारी विमर्शों में कबीर का चिंतन एक मार्गदर्शक तत्व के रूप में पुनः प्रासंगिक हो उठा है। उनके शब्दों में समाहित क्रांति और करुणा का समन्वय आज भी समाज को नई दिशा देने की क्षमता रखता है।
DOI: 10.33545/27068919.2025.v7.i7b.1552Pages: 83-86 | Views: 899 | Downloads: 243Download Full Article: Click Here
How to cite this article:
राजेश कुमार.
कबीर की वाणी और आधुनिक सामाजिक विमर्श (दलित विमर्श/स्त्री विमर्श) का संबंध. Int J Adv Acad Stud 2025;7(7):83-86. DOI:
10.33545/27068919.2025.v7.i7b.1552