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2025, Vol. 7, Issue 4, Part B


भारतीय दर्शन परम्परा में वैष्णव चतु: सम्पद्राय तथा निर्म्बाक सम्प्रदाय की भूमिका


Author(s): श्रीमती बसन्ता नन्दवाना

Abstract: सच्चिदानन्द रूपाय विश्वोत्पत्यादि हेतवे।
तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयम् नमः।।
वसुदेवसुतं देवम् कंसचाणूरमर्दनम्।
देवकी परमानंदम् कृष्णम् वंदे जगद्गुरुम्।। 1
है सच्चिदानंद स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण मैं आपको नमन करता हूँ आप इस जगत की उत्पत्ति, स्थिति विनाश और आध्यात्मिक, आदिदैविक और आदिभौतिक तीनों प्रकार के तापों का नाश् करने वाले हैं। आपको मेरा नमस्कार और श्रीमद्भगवद्गीता में संकलित इस कृष्णाष्टकम् श्लोक में भगवान श्री कृष्ण के विश्वरूप को वर्णित करते हुए कहा है कि मैं वसुदेव के पुत्र, देवकी के परमानंद, कंस चाणूर का मर्दन करने वाले समस्त विश्व के गुरु भगवान कृष्ण की वन्दना करता हूँ।


DOI: 10.33545/27068919.2025.v7.i4b.1428

Pages: 84-90 | Views: 109 | Downloads: 36

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How to cite this article:
श्रीमती बसन्ता नन्दवाना. भारतीय दर्शन परम्परा में वैष्णव चतु: सम्पद्राय तथा निर्म्बाक सम्प्रदाय की भूमिका. Int J Adv Acad Stud 2025;7(4):84-90. DOI: 10.33545/27068919.2025.v7.i4b.1428
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