2025, Vol. 7, Issue 12, Part B
भारतीय सामाजिक परिदृश्य (1990–2000) और समकालीन हिंदी कविता की संवेदना
Author(s): नितिन पाटिल
Abstract: 1990–2000 का दशक भारतीय समाज के लिए गहन परिवर्तन, संघर्ष, अस्थिरता और नए विमर्शों का काल था । आर्थिक उदारीकरण, वैश्वीकरण, तकनीकी विस्तार, धार्मिक उन्माद, सांप्रदायिक संघर्ष, राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक विडंबनाओं ने आम मनुष्य के जीवन को गहराई से प्रभावित किया । इन परिवर्तित परिस्थितियों ने हिंदी कविता की संवेदना को नई दिशा प्रदान की । आलोकधन्वा, कुमार अंबुज, कुमार विकल, बोधिसत्व, अनामिका, बद्रीनारायण और अन्य समकालीन कवियों ने इस दशक की समस्याओं-शोषण, हिंसा, स्त्री-विमर्श, आम आदमी की पीड़ा, महानगरीय अकेलापन, सामाजिक विघटन और संवेदनहीनता को अपनी कविताओं के केंद्र में स्थापित किया । यह कविता यथार्थ के कठोर धरातल पर समाज के सत्य को उजागर करती है और साथ ही परिवर्तन, प्रतिरोध, मानवीयता और सामाजिक चेतना का मानवीय स्वर भी बनती है । इस प्रकार, 1990–2000 का सामाजिक परिदृश्य समकालीन हिंदी कविता में न केवल अभिव्यक्त हुआ बल्कि उसने कविता की संवेदना को अधिक व्यापक, जटिल और मानवीय बनाया ।
DOI: 10.33545/27068919.2025.v7.i12b.1783Pages: 81-85 | Views: 55 | Downloads: 22Download Full Article: Click Here
How to cite this article:
नितिन पाटिल.
भारतीय सामाजिक परिदृश्य (1990–2000) और समकालीन हिंदी कविता की संवेदना. Int J Adv Acad Stud 2025;7(12):81-85. DOI:
10.33545/27068919.2025.v7.i12b.1783