2024, Vol. 6, Issue 12, Part B
महिलाओं के उत्थान हेतु विभिन्न कानून
Author(s): अंजली अग्रवाल, शेफालिका राय
Abstract: पिता रक्षति कौमार्ये, भर्ता रक्षति यौवने
पुत्रों रक्षति वार्धकये न स्त्री स्वतंत्रयमर्हती
समाज में स्त्री को पूर्ण रूप से स्वतंत्रता प्रदान नहीं किया गया उसकी रक्षा हेतु आयु के अनुसार पिता, पति व पुत्र को अधिकारी माना गया। जो नारी जीवन की जननी है जो संस्कृती व सभ्यता की वाहक है, विडम्बना ही है कि वह स्वयं की सुरक्षा व सम्मान हेतु स्वतन्त्र नहीं है। स्त्रियां वर्तमान समय में चांद तक पहुॅंच गयी है, किन्तु धरती पर वो आज भी पूर्ण रूप से सुरक्षित नहीं है। आर्थिक रूप से सशक्त हो या घरेलू स्त्री हो, कामकाजी हो, समाज के किसी भी वर्ग जाति की हो, उनकी सुरक्षा की बात जब आती है तो सभी स्त्रियां की समस्या समान हो जाती है। समय-समय पर समस्याओं का स्वरूप भिन्न-भिन्न रहा। विधवा, बाल विवाह, अशिक्षा जैसी समस्याओं का सामना स्त्रियों को करना पड़ा। आर्थिक स्वालम्बन हेतु जब उन्होंने घर के बाहर कदम उठाया तो घर व बाहर की दोहरी जिम्मेदारी में ’अवकाष’ जैसी समस्या, कार्यस्थल पर स्वयं की सुरक्षा व सम्मान को बनाये रखना। बेटी होनी की समस्या एवं दहेज व घरेलू हिंसा से दो-चार होना। ये सभी समस्याओं से निजात महिलाओं के जीवन में महत्व रखने वाले वो तीन पुरूष (पिता, पति एवं पुत्र) भी नहीं कर पायें, ऐसी स्थिति में ’कानून’ ही वह हथियार है जिसके प्रयोग से महिलाओं के सम्मान को बनाये रखा जा सकता है व सुरक्षा प्रदान किया जा सकता है। प्रस्तुत शोध पत्र में संविधान के माध्यम से महिलायों के दिये गये कानूनी अधिकारों को बताया गया है। यह शोध पत्र द्वितीयक आॅकडो पर आधारित है।
DOI: 10.33545/27068919.2024.v6.i12b.1397Pages: 80-83 | Views: 88 | Downloads: 30Download Full Article: Click Here