2024, Vol. 6, Issue 12, Part B
पुनर्विवाह’ उपन्यास मे स्त्री चरित्र
Author(s): रंजन
Abstract: मैथिली साहित्य मे उपन्यासक महत्वपूर्ण स्थान अछि। एहि संबंध में डा. अमरेश पाठक लिखने छलाह - “उपन्यास आधुनिक युगक महाकाव्य अछि। एहि मे मानव जीवन तथा मानव चरित्र-चित्रण उपस्थित कयल जाइत अछि। ओ मनुष्यक जीवन एवं चरित्रक व्याख्या करैत अछि तथा ओकर उद्घाटन करैत अछि।“
प्रो. रमानाथ झा अनुसार -“साहित्यशास्त्रक समीक्षक लोकनि कहैत छथि जे ‘गद्य काव्य’क एक गोट प्रधान अंग थीक।“ कथा साहित्य ओ ताहि कथा साहित्यक एक भेद थीक ‘गप्प’ ओ दोसर थीक ‘उपन्यास’। एहि दूहूक विकास विशेष रूप सँ पाश्चात्य देश सबहिक साहित्य मे भेल छैक ओ पश्चिमहिक प्रणाली पर भारतीय देश भाषा सबहुक मध्य एकर प्रसार भए रहल अछि।“
मैथिली उपन्यासक आरंभिक उद्देश्य छल समाज-सुधार एवं मनोरंजन। एहि सभमे नहि तँ चरित्र-चित्रणक सम्यक विकास दिसि ध्यान देल गेल आ ने समाजक यथार्थ वातावरण-सृष्टिहिक चेष्टा कयल गेल। केवल कथा कहबाक प्रवृत्ति धरि लक्षित होइत अछि। यद्यपि पूर्वापेक्षेएँ आरंभिक उपन्यासकार कथा-वस्तु केँ उचित रूपमे प्रतिपादित करबामे विशेष पटु बुझि पड़ैत छथि तथा तदनुरूप परिस्थितिक निर्माण सेहो सम्यक रीतिएँ करैत छथि, मुदा अधिकांश कथा रोमांटिक अछि ओ जकर विकास संयोग पर आधारित अछि।
उपन्यासक प्रमुख छओ तत्व होइत अछि - कथावस्तु, पात्र, वातावरण, कथोपकथन, शैली एवं उद्देश्य।
उपन्यास मे कथावस्तु सब सँ पहिल तत्व अछि। एकरा विषयवस्तु सेहो कहल गेल अछि। उपन्यासकारक सम्पूर्ण कला-कौशल कथानकक निर्वाह पर निर्भर करैत अछि। उपन्यासकार एक विशेष क्रम मे श्रेणीबद्ध घटना सभकेँ सुनियोजित ढंग सँ रखैत छथि। ओकरा कथावस्तु कहल जाइत अछि जे उपन्यासक रीढ़ मानल जाइत अछि।
उपन्यासक मूल तत्व अछि चरित्र-चित्रण। उपन्यास केँ मानव चरित्रक प्रतिबिम्ब कहल गेल अछि। नाटकक अभिनय पात्रक भाव-भंगिमा, वेश-भूषा आदि चरित्र-चित्रणक अभावपूर्ति करैत अछि। तँ उपन्यास मे एहि तरहक कोनो सुविधा नहि रहने ओकरा अपनहि मे पूर्ण होमए पड़ैत छैक। तैं उपन्यास मे चरित्र-चित्रणक महत्व बड़ पैघ होइत अछि।
वातावरणक निर्माणक हेतु उपन्यासकारकेँ देशकालक समुचित ज्ञान रहब आवश्यक। ओना तँ सब प्रकारक उपन्यास मे वातावरणक अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान अछि। तथापि ऐतिहासिक उपन्यास मे वातावरणक ध्यान राखन उपन्यासकारक ऐहन उत्तरदायित्व छैन्हि जकरा बिसरि ओ कथमपि सफल नहि भए सकैत छथि। ऐतिहासिक उपन्यास मे घटना केँ कल्पना प्रसूत होएबाक स्वतंत्रता ओतबे दूर धरि रहैत छैक जतेक स्वतंत्र भए कथानकक पूर्ण परिवेश असंदिग्ध तथा विश्वसनीय रहि जाइक।
औपन्यासिक पात्रक आपसी वार्तालाप कथोपकथन कहबैत अछि। एकर अनेक विशेषता छैक। तैं एकर प्रयोग उपन्यासकारक लेल आवश्यक भऽ जाइत छैन्हि। कोनो उपन्यासक कथावस्तु के वास्तविक बुझबाक संभावना कथोपकथनहिक द्वारा संभव भए पबैत अछि संगहि एकरा द्वारा कथावस्तु केँ आगाँ बढ़ाओल अछि आ चरित्र-चित्रण मे सेहो ई अत्यन्त सहायक होइत अछि।
विभिन्न रचनाकारक अपन शैली होइत छन्हि जाहि आधार पर लेखक विशेषक रचना दोसर लेखक सँ सर्वथा भिन्न बुझि पड़ैत अछि। शैलीक कारणेँ उपन्यास मे लेखकक व्यक्तित्वक छाप स्पष्ट परिलक्षित होइत अछि। शैलीक माध्यम सँ पाठक केँ रसानुभूति प्राप्त होइत अछि। विचार सेहो शैलिये अछि। उपन्यास मे शैलीक महत्वपूर्ण स्थान अछि।
उपन्यास लिखबाक कोनो ने कोनो उद्देश्य होइत अछि। वस्तुतः ई कोनो आदर्श केँ ध्यान मे राखि लिखल जाइत अछि। उपन्यास मे मानव जीवनक संघर्षक कथा रहैत अछि। ई एक दिश प्रबुद्ध पाठकक मनोरंजन करैत अछि तँ दोसर दिश जीवन संघर्षक चित्र द्वारा नैतिक आदर्श केँ उपस्थित करैत अछि।
DOI: 10.33545/27068919.2024.v6.i12b.1319Pages: 70-72 | Views: 108 | Downloads: 46Download Full Article: Click Here