प्रेमचंद जी अपने छोाटे–से लमही गॉंव के माध्यम से उन्होंने भारत की पीड़ित एवं दलित जन की पीड़ा को धड़कनों को सुना था । उनके सामर्थ्य, सीमा एवं सार्थकता को परखा था । फलत: दलित सर्वहारा वर्ग की आत्मा उनके वाड्मय में साकार हो उठी । कलम के इसे सिपाही में सामान्य जन के लिए असीम सहानुभूति थी जो उनके साहित्य में मुखरित हो उठी है ।