2024, Vol. 6, Issue 1, Part A
कालिदासीय काव्यों में पर्यावरण-विमर्श
Author(s): डॉ. रामायण सिंह
Abstract: पर्यावरण (परि+आङ्+√वृञ्+ल्युट्) वह परिवर्त है, जो प्राणिजगत् को चतुर्दिक् आच्छादन किए हुए है। इस परिवर्त के अंतर्गत सभी सजीव एवं निर्जीव घटक सम्मिलित हैं, जो मानवीय विकास को प्रभावित करते हैं। किसी कवि ने कहा भी है —
साम्यं स्वस्थत्वमेतेषां पर्यावरणसंज्ञकम्॥
अर्थात् भूमि, जल, नभ, वायु, अन्तरिक्ष, पशु-पक्षी एवं वन्य-तृण की संतुलित के साथ-साथ स्वस्थ अवस्था की अभिधा को पर्यावरण कहते हैं।
DOI: 10.33545/27068919.2024.v6.i1a.1162Pages: 71-78 | Views: 285 | Downloads: 137Download Full Article: Click Here