International Journal of Advanced Academic Studies
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2023, Vol. 5, Issue 4, Part A

नर्मदा महात्मय का समीक्षात्मक अध्ययन


Author(s): अपराजिता मिश्रा, डाॅ. महेन्द्र मणि द्विवेदी

Abstract:
कल्पान्तस्थाईनी नर्मदा प्रलय काल में भी अक्षय बनी रहती है। स्कंद पुराण के रेवा खण्ड में युधिष्ठिर को नर्मदा माहात्म्य बताते हुए महामुनि मार्कण्डेय जी कहते हैं कि सभी सरिताएं तथा समुद्र प्रलय काल में भी नष्ट हो जाते हैं, केवल नर्मदा ही सातों कल्पों में स्थित रही है। स्कंद पुराण ने प्रारम्भ में ही नर्मदा के लिए वेदगर्भा विशेषण प्रयुक्त किया है।
वेदगर्भा शब्द इंगित करता है कि ‘नर्मदा’ वेदों की रचना के दौरान वैदिक साहित्य के गर्भ मंे छिपी थी। साथ ही यदि बहुव्रीहि समास द्वारा वेदगर्भा शब्द का अर्थ निकाला जाए तो ‘‘वेदा गर्भ यस्या सा इति वेदगर्भा’’ अर्थात् वेद थे, जिसके गर्भ में, वह वेदगर्भा। भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के आदिम साहित्य के स्रोत ऋग्वेद मंे वर्णित ‘सप्त सैंधव1’ जिस स्थान पर ऋग्वैदिक संस्कृति जन्मी, जो क्षेत्र आर्यों की साधनास्थली था, वह क्षेत्र सिंधु, बिपाशा, शूत्रुद (सप्तजल), विपाशा, झेलम, अक्सीनी (चनाव), परुशणी (रावी) और सरस्वती आदि सात नदियों में युक्त था। सप्त सैधव की नदियों के अन्तर्गत नर्मदा का समावेश नहीं था, जिसका कारण नर्मदा क्षेत्र का सप्त सैधव की सीमा से दूर दक्षिण दिशा में स्थित होना था। प्राचीन वैदिक साहित्य के महत्वपूर्ण ब्राम्हण ग्रंथ शतपथ ब्राम्हण में ‘रेवा’ या रेवोत्तरसम2’’ शब्द का प्रयोग मिलता है। वैदिक कोश में इस शब्द से जुड़े कथानक को इस प्रकार उल्लेखित किया गया है-संृजय वैदिक काल की एक जाति है, इनके मित्र त्रस्त हैं, जो मध्य देश के निवासी थे। सृंजियों ने अपने राजा दुष्ट रीतु पौंसायन को दस पीढ़ियों की परम्परा तोड़कर राज सिंहासन ने हटा दिया था और उनके मंत्री रेवोत्तर पाटव चक्रस्यपति को भी मार भगाया था, किन्तु मंत्री ने कुरु राजा बल्हिक प्रातीप्य के विरोध करने पर भी दृष्टरीतु पौंसायन को फिर से राज गद्दी पर बैठाया था। यहां यह भी बहुत सम्भव है, कुरु राजा ही इस विरोध के मूल मंे रहा हो। इस आख्यान में रेवोत्तर या रेवोत्तरसम व्यक्तिवाचक संज्ञा है, जिससे मंत्री का नाम, पता चलता है। परंतु ‘बेबर’ ने रेवोत्तर में प्रयुक्त पूर्वार्ध रेवा को रेवा या नर्मदा माना है। रेवोत्तर का बहुव्रीहि समास करने पर-रेवा है, जिसके उत्तर में अर्थात् रेवा के दक्षिण में रहने वाला। इस तरह रेवोत्तर नामक व्यक्ति जो रेवा के दक्षिण तट या दिशा में रहता था।


DOI: 10.33545/27068919.2023.v5.i4a.964

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How to cite this article:
अपराजिता मिश्रा, डाॅ. महेन्द्र मणि द्विवेदी. नर्मदा महात्मय का समीक्षात्मक अध्ययन. Int J Adv Acad Stud 2023;5(4):05-09. DOI: 10.33545/27068919.2023.v5.i4a.964
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