2023, Vol. 5, Issue 4, Part A
नई शिक्षा नीति (2020): महत्व, स्वरूप अैर चुनौतियाँ
Author(s): डाॅ. मोनू सिंह
Abstract: शिक्षा मनुष्य के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती है। शिक्षित समाज ही राष्ट्र की प्रगति का आधार होता है, जिसके माध्यम से राष्ट्र न केवल उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होता है अपितु आंतरिक रूप से भी समरसता व सामंजस्यपूर्ण परिस्थितियों का निर्माण करता है। भारत में प्राचीनकाल से ही शिक्षा की समृद्धशाली परंपरा रही है। गुरुकुल शिक्षा पद्धति का संप्रत्यय विश्व को भारत ने ही दिया है। भारतीय शिक्षा व्यवस्था की इस सुदृढ परंपरा में अंग्रेजी काल में सेंध लगी और तत्कालीन शासक अपनी मान्यतानुसार शिक्षा के स्वरूप में परिवर्तन करते चले गए। परिणामतः भारत की समृद्धशाली शिक्षा परंपरा के स्वरूप और उद्देश्यों में परिवर्तन होता चला गया। आज हमारे समक्ष जो शिक्षा प्रणाली उपस्थित है वह भारतीय व पाश्चात्य का सम्मिश्रित रूप है। आधुनिक काल तक आते-आते भारतीय समाज में शिक्षा का पूरा का पूरा तंत्र पाश्चात्य जीवन दर्शनोंन्मुख हो गया और इसमें पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव बढ़ता चला गया। भारत की स्वतंत्रता के उपरांत भी अंग्रेजी शिक्षा की यह व्यवस्था न केवल ज्यों की त्यों विद्यमान रही अपितु इसका और अधिक विस्तार हुआ। स्वतंत्रता के इतने दशकों बाद भी भारतीय शिक्षा का यही मिला-जुला स्वरूप प्रचलित है, जिसमें स्थानीय भाषाओं की अपेक्षा अंग्रेजी को वरीयता मिलली चली गई। नई शिक्षा नीति (2020) में भारत सरकार के द्वारा भारतीय शिक्षा पद्धति को भारतीयता के अनुरूप बनाने का प्रयास किया गया है। इस शिक्षा नीति के निर्माताओं ने सर्वप्रथम भारतीय शिक्षण पद्धति में भारतीय संस्कृति और भाषाओं के महत्व की ओर ध्यान दिया है और इनके विकास के लिए पूरा तंत्र विकसित करने की अनुशंसा की है। ऐसे में सदियों से चली आ रही शिक्षा पद्धति के स्वरूप में एकाएक बदलाव लाना चुनौतीपूर्ण है लेकिन नई शिक्षा नीति (2020) इस चुनौती को न केवल स्वीकार करती है अपितु अनेक संभावनाएँ भी प्रकट करती हैं। प्रस्तुत शोधालेख में नई शिक्षा नीति (2020) में निहित इन्हीं संभावनाओं और चुनौतियों को रेखांकित करने का प्रयास किया गया है।
DOI: 10.33545/27068919.2023.v5.i4a.1455Pages: 83-87 | Views: 143 | Downloads: 27Download Full Article: Click Here