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2023, Vol. 5, Issue 2, Part A


लोकसंग्रहः एक दार्शनिक विमर्श


Author(s): अंकित जायसवाल

Abstract: भारतीय दर्शन में लोकसंग्रह या लोककल्याण की अवधारणा क्या हैं ? लोककल्याण का तात्पर्य क्या हैं ? क्या गीता के अतिरिक्त लोकसंग्रह का वर्णन कहीं और देखने को मिलता हैं ? लोकसंग्रही व्यक्ति कैसा होता हैं ? लोकसंग्रही के कर्म क्या हैं ? लोकसंग्रह के लिए मनुष्य को किन-किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता हैं ? इत्यादि प्रश्न मानव मस्तिष्क में उभरते हैं। इन्हीं सभी प्रश्नों को जानना मेरे शोध आलेख का प्रतिपाद्य विषय हैं।

DOI: 10.33545/27068919.2023.v5.i2a.934

Pages: 33-36 | Views: 765 | Downloads: 421

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How to cite this article:
अंकित जायसवाल. लोकसंग्रहः एक दार्शनिक विमर्श. Int J Adv Acad Stud 2023;5(2):33-36. DOI: 10.33545/27068919.2023.v5.i2a.934
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