Abstract: भारतीय दर्शन में लोकसंग्रह या लोककल्याण की अवधारणा क्या हैं ? लोककल्याण का तात्पर्य क्या हैं ? क्या गीता के अतिरिक्त लोकसंग्रह का वर्णन कहीं और देखने को मिलता हैं ? लोकसंग्रही व्यक्ति कैसा होता हैं ? लोकसंग्रही के कर्म क्या हैं ? लोकसंग्रह के लिए मनुष्य को किन-किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता हैं ? इत्यादि प्रश्न मानव मस्तिष्क में उभरते हैं। इन्हीं सभी प्रश्नों को जानना मेरे शोध आलेख का प्रतिपाद्य विषय हैं।