2023, Vol. 5, Issue 12, Part A
अज्ञेय के यात्रा-साहित्य में विविधता
Author(s): नंदिता साहू, डाॅ. आनन्द कुमार सिंह
Abstract: अज्ञेय सदैव यात्रा पर ही रहे, पर जिन तीन यात्रा संस्मरणों के कारण वे चर्चा, बहस और विवाद के केन्द्र में रहे वे हैं- ‘अरे यायावर रहेगा याद?‘ (1953), ‘एक बूंद सहसा उछली‘ (1960) और ‘जय जानकी जीवन यात्रा‘ (1983)। ‘अरे यायावर रहेगा याद?‘ कहने को तो भारत के पूर्वी सीमान्त से लेकर उत्तर-पश्चिम सीमान्त तक की यात्रा का संस्मरणात्मक-वृत्तान्त है, पर इसमें उत्तर-दक्षिण के क्षेत्र भी बीच-बीच में झलक दिखता जाये तो कोई आश्चर्य नहीं। अपनी ही कविता-पंक्ति को आधार बनाकर अज्ञेय ने इसका नामकरण तो किया ही, मनुष्य और प्रकृति के बीच अन्तर-सम्बन्धों को व्याख्यायित-विश्लेषित करने के पूर्व पुस्तक के प्रारंभ में ही वह कविता भी उकेर दी- ‘पाश्र्व गिरि का नम्र, चीड़ों में। डगर चढ़ती उमंगों-सी। बिछी पैरों में नदी, ज्यों दर्द की रेखा। विहग-शिशु मौन नीड़ों में। मैंने आँख भर देखा। दिया मन को दिलासा: पुनः आऊँगा। भले ही बरस दिन-अनगिन युगों के बाद। क्षितिज ने पलक-सी खोली। तमक कर दामिनी बोली: अरे यायावर! रहेगा याद? ‘एक बूँद सहसा उछली‘ विदेशी यात्राओं का वृत्तान्त है, जिसमें अज्ञेय ने स्विटजरलैण्ड, बर्लिन, पेरिस आदि के दर्शनीय स्थलों के साथ वहाँ के कवियों और लेखकों से अपनी मुलाकातों को रोचक अंदाज में पेश किया है। ‘जय जानकी जीवन यात्रा‘ सीतामढ़ी से चित्रकूट तक की यात्रा है। अज्ञेय ने जो भी किया खुले दिल से किया। प्रयोग किया तो खुले दिल से किया, यात्राएँ कीं तो खुलकर कीं। उनके अन्तस् की प्रेरणा से ही बाह्य और अनवरत यात्राएँ सम्भव हुई।
DOI: 10.33545/27068919.2023.v5.i12a.1119Pages: 53-55 | Views: 410 | Downloads: 151Download Full Article: Click Here
How to cite this article:
नंदिता साहू, डाॅ. आनन्द कुमार सिंह.
अज्ञेय के यात्रा-साहित्य में विविधता. Int J Adv Acad Stud 2023;5(12):53-55. DOI:
10.33545/27068919.2023.v5.i12a.1119