2023, Vol. 5, Issue 12, Part A
इक्कीसवीं सदी का हिन्दी उपन्यास में आदिवासी जीवन
Author(s): कुणाल किशोर, डाॅ. राकेश कुमार रंजन
Abstract: आदिवासी या जनजाति का जीवन संस्कृत साहित्य में दिखाई पड़ता हैं। वेदों पुराणों उपनिषदों के साथ-साथ रामायण, महाभारत में भी आदिवासी समाज के बारे में चर्चा किये गये हैं। इन साहित्यों में असुर, राक्षस, वानर, निषाद का शब्द आदिवासियों के लिए प्रयुक्त हुये हैं।
1900 ई0 से आदिवासी जीवन केन्द्रित उपन्यास साहित्य हमे व्यापक रूप में देखने को मिलते हैं। वैसे अंग्रेज लेखकों द्वारा आदिवासी जीवन पर बहुत अधिक सामग्री इक्कठा किये हैं। जिसमें उनके रीति-रिवाज का उल्लेख किया गया हैं। ‘‘आदिवासियों से सम्बधित विवरण अधिकतर अंग्रेज लेखकों द्वारा एकत्र की हुई सामग्री पर अधारित हैं और इनमें सिर्फ इनके रीति-रिवाजों का सरसरी तौर पर मात्र उल्लेख किया गया हैं। इस उल्लेख से मुख्यधारा का समाज उनकी खास विशेषताओं से परिचित हो पाया। शिक्षित जनों को एक ओर भारत को देखने का मौका मिला, जिसकी चर्चा उनके साहित्य में और राजनीतिक लेखकों में कम होती हैं।1
DOI: 10.33545/27068919.2023.v5.i12a.1113Pages: 51-52 | Views: 303 | Downloads: 117Download Full Article: Click Here
How to cite this article:
कुणाल किशोर, डाॅ. राकेश कुमार रंजन.
इक्कीसवीं सदी का हिन्दी उपन्यास में आदिवासी जीवन. Int J Adv Acad Stud 2023;5(12):51-52. DOI:
10.33545/27068919.2023.v5.i12a.1113