बिहार के सामाजिक विकास में सूचना एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका
Author(s): शत्रुघ्न राऊत
Abstract: नए-नए आविष्कार एवं खोज के फलस्वरूप हमारे समाज में इतने महत्त्वपूर्ण विकास हुए है कि इसे एक क्रांति का नाम दिया जाता है। फलतः वर्तमान युग को विज्ञान का युग कहा जाता है। वैज्ञानिकरण ने न केवल सामाजिक संगठन कोही नया रूप दिया है बल्कि आर्थिक संरचनाओं के प्राचीन स्वरूपों एवं प्राचीन विचारधाराओं का भी धीरे-धीरे अवमूल्यन कर दिया है। आर्जन के अनुसार, विज्ञान हमारे पर्यावरण के परिवर्तन के फलस्वरूप हमारे अनुकूलन को सहज बनाती है यह परिवर्तन प्रायः भौतिक पर्यावरण में आता है तथा हम इन परिवर्तनों के साथ जो अनुकूलन करते हैं, उससे प्रथाओं एवं सामाजिक संस्थाओं में परिवर्तन हो जाता है। “यह सच है कि विज्ञान में हमें आधुनिकीकरण के सभी साधन प्रदान किए हैं जिनका मनुष्य अपनी आवश्यकतानुसार प्रयोग करता है। परन्तु संसात्मक विज्ञान कभी-कभी विनाश का पर्याय भी बन जाता है।
संचार के नए साधन एक महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिक कारक हैं जिसने अत्यधिक तेजी से सामाजिक परिवर्तन की दशा उत्पन्न की है। संचार की अनेक प्रविधियों (जैसे रेडियों, टेलीविजन, टेलीफोन तथा तार व्यवस्था) ने हमारे जीवन को कहीं अधिक गतिशील बना दिया है। इसने स्थानीय दूरी को इतना कम कर दिया है कि एक स्थान के विचारों को हजारों मील दूर तक कुछ क्षणों के अन्दर ही सुना जा सकता है। फलस्वरूप विभिन्न संस्कृतियों की विशेषताओं का एक-दूसरे से निरन्तर मिश्रण हो रहा है। इस प्रकार संचार के साधनों में होने वाली प्रत्येक उन्नति सात्मीकरण और एकीकरण की प्रक्रिया को और अधिक तीव्र कर देती है। रेडियों ने ग्रामीण और नगरीय समुदायों के बीच के अन्तर को कम करने में अत्यधिक योग दिया है, राजनीतिक जीवन का विस्तार किया है तथा सामाजिक सम्बन्धों के रूढ़िगत तत्वों को निकाल फेंकने में समाज की सहायता की है। चलचित्रों ने हमारे सामाजिक जीवन को जो नया रूप दिया है उससे सभी व्यक्ति परिचित हैं। इससे हमारी वेश-भूषा और रहन-सहन का स्तर ही प्रभावित नहीं हुआ बल्कि मनोवृत्तियों और विचारों तक में परिवर्तन हो गया है। स्त्रियों की स्थिति को ऊँचा उठाने में भी इसका योगदान कम नहीं है। संसार की प्रविधियों ने सामाजिक नियन्त्रण को भी पहले से अधिक प्रभावपूर्ण बना दिया है।
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शत्रुघ्न राऊत. बिहार के सामाजिक विकास में सूचना एवं प्रौद्योगिकी की भूमिका. Int J Adv Acad Stud 2022;4(3):215-219.