Abstract: जैन दर्शन मे ’’सर्वज्ञानवाद’’ अथवा’’ सर्वज्ञ का ज्ञान’’ एक विशेष महत्व का विषय रहा है, किन्तु जैनेतर दार्शनिकों का मानना है कि ’’सर्वज्ञ’’ नाम की कोई भी वस्तु नहीं है क्योंकि वह न तो दिखाई देती है और न ही उसको तर्क के आधार पर सिद्ध किया जा सकता है। जैनेतर दार्शनिकों की यह उक्ति युक्तिसंगत प्रतीत नहीं होती है क्योंकि चाहे कोई भी दर्शन रहा हो, वह किसी न किसी रूप में ’’सर्वज्ञ’’ की सत्ता को स्वीकार करता रहा है।