2022, Vol. 4, Issue 3, Part C
सामाजिक आंदोलनों का समाजशास्त्रीय अध्ययनः एक विचारधारात्मक दृष्टिकोण
Author(s): ऋतु जैन
Abstract: यह शोध पत्र सामाजिक आंदोलनों की प्रकृति, संरचना, उद्देश्य और सामाजिक परिवर्तन में उनकी भूमिका का समाजशास्त्रीय तथा विचारधारात्मक विश्लेषण प्रस्तुत करता है। सामाजिक आंदोलन सामाजिक असमानताओं, शोषण, भेदभाव और सत्ता के केंद्रीकरण के विरुद्ध एक संगठित, सामूहिक और विचारशील प्रतिक्रिया के रूप में उभरते हैं। यह केवल तत्काल असंतोष की अभिव्यक्ति नहीं होते, बल्कि सामाजिक पुनर्निर्माण और न्याय आधारित समाज की आकांक्षा भी होते हैं।
समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से सामाजिक आंदोलनों को विश्लेषित करते हुए इस शोध पत्र में संरचनात्मक-कार्यात्मक, संघर्ष सिद्धांत, प्रतीकात्मक अन्तःक्रिया और संसाधन-संचालन सिद्धांत जैसे प्रमुख फ्रेमवर्क का प्रयोग किया गया है। इसके अतिरिक्त, विचारधारात्मक दृष्टिकोण जैसे माक्र्सवाद, गांधीवाद, फेमिनिज़्म और दलित चेतना के अंतर्गत भी आंदोलनों की प्रेरणाओं और दिशा को समझने का प्रयास किया गया है।
भारतीय संदर्भ में दलित आंदोलन, किसान आंदोलन, महिला आंदोलन, पर्यावरणीय आंदोलन (जैसे- चिपको और नर्मदा बचाओ) और छात्रों के आंदोलनों का विश्लेषण यह स्पष्ट करता है कि ये आंदोलन न केवल नीति में बदलाव के माध्यम बने, बल्कि सामाजिक चेतना के पुनर्गठन में भी सहायक रहे हैं। इन आंदोलनों ने सत्ता और समाज के संबंधों को चुनौती दी और वंचितों को आवाज दी।
DOI: 10.33545/27068919.2022.v4.i3c.1509Pages: 231-234 | Views: 90 | Downloads: 29Download Full Article: Click Here
How to cite this article:
ऋतु जैन.
सामाजिक आंदोलनों का समाजशास्त्रीय अध्ययनः एक विचारधारात्मक दृष्टिकोण. Int J Adv Acad Stud 2022;4(3):231-234. DOI:
10.33545/27068919.2022.v4.i3c.1509