International Journal of Advanced Academic Studies
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2022, Vol. 4, Issue 2, Part A

श्रीमद् भगवद्गीता में योग तत्त्व का विवेचन


Author(s): नम्रता दवे, डाॅ. दिपेन्द्र सिंह चैहान, मीना जैन

Abstract: श्री वेद व्यास जी ने महाभारत के शांतिपर्व में श्री मद् भगवद्गीता का वर्णन किया है व गीता के बारे में कहा है-
“गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः या स्वयं 4-2-3 सृता।।”
अर्थात्- गीता को मन से पढ़कर उसे भाव सहित, श्रद्धापूर्वक अपने अन्तःकरण में धारण करना चाहिए, जो स्वयं भगवान विष्णु के मुख से प्रकट हुई है।
बाबा विनोबा भावे की दृष्टि में गीता ज्ञान-
“यदि नम्रता न हो, तो यह ‘जय’ कब ‘पराजय’ में परिणत हो जायेगी इसका पता भी नहीं चलेगा। इस तरह सामने ‘निर्भयता’ और साथ में ‘नम्रता’ को रखकर सक सद्गुणों का विकास किया जा सकेगा।
मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के दिन कुरूक्षेत्र के मैदान में भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद् भगवद्गीता का उपदेश अर्जुन को दिया था। गीता की उत्पत्ति के इस दिन को गीता जयंती के रूप में मनाया जाता है। गीता दुनिया का इकलौता ऐसा ग्रंथ है जिसकी जंयती मनाई जाती है।
सनातन संस्कृति में गीता पूज्य एवं अनुकरणीय ग्रंथ है, इसके कई श्लोंको में जीवन का सार छिपा हैं। संकट के समय में ये श्लोक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करते हैं।
गीता में योग शब्द को एक नहीं बल्कि कई अर्थो में प्रयोग किया है जैसे सुखी नर, तपस्वी, संयमी, सन्यासी, मुमुक्ष, सौंदर्ययोगी, कर्मयोगी, आदि।
गीता में भिन्न-भिन्न कई प्रकार के योग का वर्णन मिलता है, किन्तु प्रत्येक योग का अन्तिम लक्ष्य एकमात्र है-‘ईश्वर मिलन’। श्रीमद् भगवद्गीता को यदि योग का मुख्य गं्रथ कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इसी बात की पुष्टि इस शोध के द्वारा की गई है। इस शोध पत्र के द्वारा यह खोज की गई कि-“गीता के 18 अध्याय के कुल 700 श्लोकों में से कुल 90 श्लोकों में 108 बार योग शब्द का प्रयोग हुआ है। इसी में सिद्ध होता है कि गीता एक योग ग्रंथ हैं। अंक ‘108’ जो कि अध्यात्म का प्रतीक हैं। जिस प्रकार ब्रह्म की शाब्दिक अभिव्यंजना प्रणव (ऊँ) है, ठीक उसी प्रकार ब्रह्म की गाणितिक अभिव्यंजना ‘108’अंक है। 108 का आध्यात्मिक अर्थ काफी गूढ़ हैं और 108 बार ही योग शब्द का प्रयोग गीता में हुआ जो कि श्रीमद् भगवद्गीता, योग, ईश्वर तत्त्व एवं अध्यात्म को एक माला के मोती की तरह एक साथ पिरोता है। इस शोध पत्र के माध्यम से हम गीता में योग के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए ‘108’ अंक की आध्यात्मिक महिमा पर चर्चा करेगें। श्री अरबिंदो के अनुसार “श्रीमद् भगवद्गीता हर युग के लिए एक नया संदेश और हर सभ्यता के लिए एक नए अर्थ के साथ एक किताब के बजाय एक जीवित रचना है, तथा मानव जाति का एक सच्चा ग्रंथ है।


DOI: 10.33545/27068919.2022.v4.i2a.751

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How to cite this article:
नम्रता दवे, डाॅ. दिपेन्द्र सिंह चैहान, मीना जैन. श्रीमद् भगवद्गीता में योग तत्त्व का विवेचन. Int J Adv Acad Stud 2022;4(2):04-07. DOI: 10.33545/27068919.2022.v4.i2a.751
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