2022, Vol. 4, Issue 1, Part E
बाणसागर परियोजना: रीवा जिले में भूमि उपयोग का भौगोलिक अध्ययन
Author(s): राजकुमार कुशवाहा, डॉ. सुशीला द्विवेदी
Abstract: किसी भी भौगोलिक क्षेत्र के पर्यावरण और पारितन्त्रीय संतुलन में भूमि उपयोग की काफ़ी भूमिका होती है। प्राकृतिक पर्यावरण के भूदृश्य वर्तमान समय के मानुष आक्रांत भूदृश्यों से बहुत अलग हुआ करते थे। मनुष्य ने प्राकृतिक पर्यावरण और पारितंत्रों को तकनीकी और वैज्ञानिक ज्ञान द्वारा बदल कर नव्य पारितंत्रों की स्थापना की है। इन परिवर्तनों में भूमि उपयोग में परिवर्तन सबसे व्यापक और प्रत्यक्ष रूप से परिलक्षित होने वाले हैं। भूमि उपयोग का महत्वपूर्ण वर्ग होता है जिसके द्वारा कृषि व्यवस्था को भली भांति समझा जा सकता है। पिछड़े क्षेत्रों में जहॉं आज भी कृषि अवैज्ञानिक तथा प्राचीन विधियों द्वारा की जाती है तथा भूमि का संरक्षण नहीं किया जाता है। जिले में चारागाहों का पर्याप्त विकास हुआ है। वर्तमान 2018-19 में चारागाहें का कुल क्षेत्रफल 26299 हेक्टेयर है जो कि वर्ष 2011-12 में 26879 हेक्टेयर था इस प्रकार पिछले वर्षो की अपेक्षा चारागाहों के क्षेत्र में थोड़ा कमी आई है परन्तु जिले के कई विकासखण्डो तहसीलों में चारागाह का उत्तम विकास भी हुआ है। जिले में स्पष्ट रूप से पिछले वर्षो की तुलना में चारागाह के क्षेत्रों में स्पष्ट अन्तर दिखाई पड़ता है और यह अन्तर बाणसागर परियोजना के जिले में सिंचाई विस्तार के कारण संभव हुआ हैैं।
DOI: 10.33545/27068919.2022.v4.i1e.744Pages: 353-355 | Views: 1040 | Downloads: 532Download Full Article: Click Here
How to cite this article:
राजकुमार कुशवाहा, डॉ. सुशीला द्विवेदी.
बाणसागर परियोजना: रीवा जिले में भूमि उपयोग का भौगोलिक अध्ययन. Int J Adv Acad Stud 2022;4(1):353-355. DOI:
10.33545/27068919.2022.v4.i1e.744