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2021, Vol. 3, Issue 4, Part C


स्वतन्त्रता के पूर्व एवं पश्‍चात बालिका शिक्षा


Author(s): प्रियंका कुमारी, डॉ. मंजू कुमारी सिन्हा

Abstract: आज सामान्य नारी की स्थिति क्या है? यह जानने के लिए प्राचीन काल के पन्ने पलटना अनुचित न होगा। परिवर्तन शीलता के नैसर्गिक नियम के कारण भारतवर्ष में स्त्री की समाजिक अवस्था सदा एक सी नही रही । प्रारम्भ में नारी को समाज में बहुत ही प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त था। मनुस्मृति में तो स्पष्ट रूप से कहा गया है – “यत्रं नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता'। वेदकाल में सावित्री अनुसुइया तथा गार्गी आदि नारियाँ सुशिक्षित सुशील व उच्चकोटि की विदुषी थीं कई नारी रत्नों ने वेदमन्त्रो की रचना की। नारी को समाज में नर के समान महत्व प्राप्त था। वह नर की अर्धागिनी थी। कोई भी सामाजिक अनुष्ठान नारी के बिना पूर्ण नही हो पाता था। महाभारत काल तक आते-आते नारी की गरिमा कुछ कम होने लगी, नारी जो पूर्वकाल में नर की सहचारी थी अब मात्र सम्पत्ति बनकर रह गयी अन्यथा पाण्डव द्युतकीडा में द्रोपदी को दांव पर क्यो लगाते? नारी पृथ्वी के समान समझी जाने लगी और नारी के लिए अनेक भीषण युद्ध हुए ।

DOI: 10.33545/27068919.2021.v3.i4c.771

Pages: 244-246 | Views: 520 | Downloads: 152

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How to cite this article:
प्रियंका कुमारी, डॉ. मंजू कुमारी सिन्हा. स्वतन्त्रता के पूर्व एवं पश्‍चात बालिका शिक्षा. Int J Adv Acad Stud 2021;3(4):244-246. DOI: 10.33545/27068919.2021.v3.i4c.771
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