2021, Vol. 3, Issue 4, Part C
मुंशी प्रेमचन्द के उपन्यासों में स्त्री विमर्ष: एक अध्ययन
Author(s): सुरेन्द्र कुमार गुप्ता
Abstract: हिंदी साहित्य में स्त्री-विमर्ष की स्थिति काफी महत्वपूर्ण है। इस आलेख में उपन्यासकार प्रेमचंद द्वारा लिखित उपन्यासों में स्त्री-विमर्ष पर एक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। यह एक अनुसंधानमूलक आलेख है। इसमें प्रेमचंद के उपन्यासों में स्त्री विमर्ष के साथ-साथ हिंदी उपन्यास में स्त्री विमर्ष के आगमन पर एक संक्षिप्त ऐतिहासिक विवरण भी उल्लेखित है। स्त्री विमर्ष का इतिहास, अवधारणा के साथ ही सिद्धांत और आगमन पर एक विवरण भी उल्लेखित है। स्त्री विमर्ष रूढ़ हो चुकी मान्यताओं के प्रति असंतोष व उससे मुक्ति का स्वर है। पितृसत्तात्मक समाज के दोहरे नैतिक मापदंड, मूल्यों व अंतर्विरोधों को समझने व पहिचानने की गहरी अंतर्दृष्टि है। विष्व चिंतन में यह एक नई बहस को जनम देता है। पितृसत्तात्मक पारिवारिक संरचना पर सवाल खड़ा करता है। आखिर क्यों स्त्रियाँ अपने मुद्दों, अव्यवस्थाओं और समस्याओं के बारे में नहीं सोच सकतीं? क्यों उनकी चेतना को इतने लंबे समय से अनुषासित व नियंत्रित की जाती रही है? क्यों वे किसी निर्धारित साँचे में ढली निर्जीव मूर्तियाँ मानी जाती है? क्यों उन्हें परंपरा से बंधी मूक वस्तु समझा जाता है? क्यों उनकी अपनी कोई पहचान नहीं? जब इन सवालों का जबाब ढूँढ़ना शुरू हुआ, तब स्त्री अपना अस्तित्व और अधिकार की बात करने लगी। जो पितृसत्तात्मक के सामने एक बड़ा सवाल के रूप में उभरा। सिमोन द बाउआर के अनुसार ”स्त्री पुरूष प्रधान समाज की कृति है। वह अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए स्त्री को जनम से ही अनेक नियमों के ढाँचे में ढालता चला गया। जहाँ उसका व्यक्तित्व दबता चला जाता है।“ राजनैतिक क्षेत्र के साथ-साथ साहित्य में भी स्त्रियों की स्थिति में सुधार हेतु यथेष्ठ प्रयास हुआ है आज भी स्त्रियों की अवस्था में कोई खास परिवर्तन नजर नहीं आता।
DOI: 10.33545/27068919.2021.v3.i4c.1012Pages: 267-272 | Views: 376 | Downloads: 101Download Full Article: Click Here
How to cite this article:
सुरेन्द्र कुमार गुप्ता.
मुंशी प्रेमचन्द के उपन्यासों में स्त्री विमर्ष: एक अध्ययन. Int J Adv Acad Stud 2021;3(4):267-272. DOI:
10.33545/27068919.2021.v3.i4c.1012