पुष्प जी के भावनात्मक प्रसंगों को उद्घाटित करता उपन्या: नहीं लौटने वाला रास्ता
Author(s): डॉ. नीतू कुमारी
Abstract: सामाजिक उपन्यास के दायरे में रॉबिन शॉ पुष्प के उपन्यासों को रखते हुए उपन्यास-कला का तात्त्विक विवेचन और उपन्यास की रचना के आधारभूत तत्त्वों का निरूपण कथावस्तु, चरित्र-चित्रण, कथोपकथन, देषकाल- परिस्थिति, भाषा-षैली और जीवन-दर्षन या उद्देष्य के आधार पर किया गया है। पुष्पजी ने समाज में व्याप्त बुराइयों की आलोचना की है और साथ ही उनके इलाज भी सुझाए हैं। इनकी भाषा-षैली को देखकर ऐसा लगता है जैसे इन्होंने अपने उपन्यासों का उपयोग मूलतः अपने विचारों को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहँुचाने के लिए किया। इनके उपन्यासों में सुधारवादी संदेष साफ-दिखाई-सुनाई देते हैं। इनके उपन्यास अक्सर अपने पाठकों से उनके असली संसार की बातें करते हैं। इन्होंने बहुधा आदर्ष नायक-नायिकाएँ पेष की हैं ताकि पाठकों के द्वारा सराहना की जा सके। इनके उपन्यास में विस्तार भी है, प्रभाव भी है। औपन्यासिक दृष्टि से ‘नहीं लौटनेवाला रास्ता’ में कथानक, देषकाल, परिस्थिति, चरित्र, संवाद, भाषागत वैषिष्ट्य और उद्देष्य जीवंत, प्रासंगिक, पठनीय और प्रषंसनीय है।
डॉ. नीतू कुमारी. पुष्प जी के भावनात्मक प्रसंगों को उद्घाटित करता उपन्या: नहीं लौटने वाला रास्ता. Int J Adv Acad Stud 2021;3(3):221-222. DOI: 10.33545/27068919.2021.v3.i3c.607