2021, Vol. 3, Issue 3, Part B
वैदिक वांङ्मय में पुरूषार्थ : अर्थ एक प्रधान तत्त्व
Author(s): Dr. Sujay Das
Abstract: भारतीय संस्कृति के ज्ञान के मूल आधार वेद ही हैं। वेद न केवल भारतीय संस्कृति अपितु विश्व संस्कृति और विश्व-साहित्य के इतिहास में भी अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। प्राचीन विश्व को संस्कृति पाठ पढ़ाने वाले भारतीय आर्यों के रहस्य को वेद ही समझा सकते हैं। यद्यपि ये वेद मुख्य रूप से संस्कृति के आध्यात्मिक पक्ष पर ही प्रकाश डालते हैं लेकिन फिर भी इन ग्रन्थ के माध्यम से संस्कृति के भौतिक पक्ष की कतिपय विशेषताओं पर भी प्रचुर प्रकाश डाला जा सकता है। यहाँ भौतिक पक्ष से तात्पर्य मानव के आर्थिक चिन्तन से है। तत्कालीन समय में भौतिक पक्ष के विकास में अर्थ की महत्त्वपूर्ण योगदान देखकर प्राचीनकालीन अनेक भारतीय शास्त्रकारों नें इसे पुरूषार्थ के रूप में स्वीकार किया। जिस में अर्थ एक प्रधान तत्त्व के रूप में प्रतिपादित हुया। अर्थ की विकास में कृषि, पशुपालन और व्यापार का योगदान क्या था, वह वैदिक साहित्य के आलोचनात्मक अध्ययन से ही ज्ञात होता है। अतः इस विचार्य विषय का विवेचना यहाँ अति महत्त्वपूर्ण हैं।
DOI: 10.33545/27068919.2021.v3.i3b.583Pages: 81-88 | Views: 1585 | Downloads: 810Download Full Article: Click Here
How to cite this article:
Dr. Sujay Das.
वैदिक वांङ्मय में पुरूषार्थ : अर्थ एक प्रधान तत्त्व. Int J Adv Acad Stud 2021;3(3):81-88. DOI:
10.33545/27068919.2021.v3.i3b.583