श्रीमद्भगवद्गीता में गुह्य गुह्यतर एवं गुह्यतम विषय
Author(s): Dr. Gauri Bhatnagar
Abstract: गीता सर्वशास्त्रमयी है। गीता में समस्त शास्त्रों का सार निहित है महाभारत में भी कहा गया है 'सर्वशास्त्रमयी गीता।" 1 इसी के आधार पर धर्म-प्राण संस्कृति और आर्य जाति के कुछ आदर्शों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। आर्य संस्कृति के सभी मौलिक सिद्धान्त स्पष्टता अथवा सूत्ररूप में गीता में प्राप्त होते हैं। ईश्वर के गुण, प्रभाव, स्वरूप, तत्त्व, रहस्य और उपासना का तथा कर्म एवं ज्ञान का वर्णन जिस प्रकार इस गीताशास्त्र में किया गया है वैसा अन्य ग्रन्थों में एक साथ मिलना कठिन है। स्वयं भगवान् वेदव्यास ने कहा है "गीता का ही भली प्रकार से श्रवण, कीर्तन, पठन-पाठन, मनन और धारण करना चाहिये, अन्य शास्त्रों के संग्रह की क्या आवश्यकता है? क्योंकि वह स्वयं पद्मनाभ भगवान् के साक्षात् मुख कमल से निकली हुई है। 2