2021, Vol. 3, Issue 1, Part C
धर्मवीर भारती के प्रबन्ध काव्य में समाज चेतना का अध्ययन
Author(s): युगेश त्रिपाठी
Abstract: धर्मवीर भारती की प्रबन्ध रचना -’अन्धायुग’ एवं ’कनुप्रिया’ में समाज चेतना की नयी उद्भावना अनुसंधान की दृष्टि से उपयोगी प्रतीत हुआ है। यही मेरे शोध का प्रयोजन एवं उद्देश्य है। मेरे मन में शोध लेखन की जिज्ञासा नयी कविता के प्रबन्ध काव्यों, समाज चेतना की नयी उद्भावना लेकर बलवती हुई है। इन रचनाकारों के प्रबन्ध काव्यों में समाज चेतना के बदलते स्वरूप के नये परिवेश और प्राचीन धार्मिक मूल्यों के साथ समन्वित रूप से संस्पर्श करने एवं परखने का प्रयास किया गया है। समाज के प्रति नवीनता के आग्रही कवि की वैयक्तिक अनुभूति भी समाज की विशद् परिधि में समाहित होकर सामाजिक भावबोध का स्पर्श करती हुई परिलक्षित होती है जिससे कवि की वैयक्तिकता और सामाजिकता दोनों पहलुओं के प्रति सजगता और जागरुकता का पता चलता है। धर्मवीर भारती ने यह अनुभव किया कि इस ग्रन्थ की स्थितियाँ, मनोवृत्तियाँ सब विकृत हैं। कौरव और पाण्डव दो वंशों में मर्यादा की डोरी उलझ सी गयी है। इस प्रस्तुत प्रबन्ध काव्य में एक मात्र कृष्ण ही ऐसे पात्र हैं जिनमें असीम साहस है और वे समस्याओं को सुलझाने में समर्थ हैं। ‘अन्धायुग’ के अधिकतर पात्र पथ भ्रष्ट, आत्महारा, विगलित और अन्धे हैं। जबकि धृतराष्ट्र ही जन्मान्ध थे। कवि ने अन्धायुग के अन्तर्गत उन्हें अन्धे की कथा ज्योतिकार चित्रण किया है। समाज चेतना के धरातल पर वे सामाजिक वर्जनाओं और विकृतियों से जूझते दिखाई देते हैं। सामाजिक परिवेश के प्रति उनके दायित्व बोध का अनुमान तो होता है पर ये कवि आत्मिक बोध के स्तर पर आध्यात्मिक मूल्यों की खोज से जुड़े रहे।
DOI: 10.33545/27068919.2021.v3.i1c.487Pages: 207-209 | Views: 3731 | Downloads: 2853Download Full Article: Click Here
How to cite this article:
युगेश त्रिपाठी.
धर्मवीर भारती के प्रबन्ध काव्य में समाज चेतना का अध्ययन. Int J Adv Acad Stud 2021;3(1):207-209. DOI:
10.33545/27068919.2021.v3.i1c.487