कुँवर नारायण का जीवन मूल्याश्रित भाव क्षितिज एवं काव्योपलब्धियों का अध्ययन
Author(s): रुचि पाण्डेय
Abstract: कुँवर नारायण का स्वयं का वक्तव्य है - साहित्य जब सीधे जीवन से सम्पर्क छोड़कर वादग्रस्त होने लगता है, तभी उसमें वे ततव उत्पन्न होते है जो उसके स्वाभाविक विकास में बाधक होते है। जीवन से संपर्क का अर्थ केवल अनुभव मात्र नहीं बल्कि वह अनुभूति और मननशक्ति भी है, जो अनुभव के प्रति तीव्र और विचारपूर्ण प्रतिक्रिया कर सके। कोई अनुभव सार्थक तभी जाना जाएगा जब वह किसी महत्वपूर्ण परिणाम में प्रतिफलित हों और यह बिना एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखकर चले संभव नहीं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मेरा अभिप्राय उस उदार और सहिष्णु मनोवृत्ति से है जो जीवन को किसी पूर्वग्रह से पंगु करके नहीं देखती बल्कि उसके प्रति चहुमुखी सतर्कता बरतती है। कलाकार एक वैज्ञानिक के लिए जीवन में कुछ भी अग्राह्य नहीं उसका क्षेत्र किसी वाद या सिद्धान्त विशेष का संकुचित दायरा न होकर वह संपूर्ण मानव परिस्थिति है जो उसके लिए एक अनिवार्य वातावरण बनाती है और जिसे उसका जिज्ञासु स्वभाव बराबर सोचता विचारता रहता है। कुँवर नारायण ने अपने रचनाधर्म में पौराणिक पात्र, मिथकीय चेतना एवं पारस्परिक साहित्य की अनुगूंजे प्रमुखता के साथ स्थान पाती हैं, उनका मानना है कि पौराणिक अतीत केवल हमारी स्मृति का हित्सा नहीं हैं वरन् वह बहुत कुछ आज भी हमारी मानसिकता के प्रतीक रूप से सजीव जीवंत और सक्रिय है।
रुचि पाण्डेय. कुँवर नारायण का जीवन मूल्याश्रित भाव क्षितिज एवं काव्योपलब्धियों का अध्ययन. Int J Adv Acad Stud 2021;3(1):204-206. DOI: 10.33545/27068919.2021.v3.i1c.486