International Journal of Advanced Academic Studies
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2020, Vol. 2, Issue 4, Part D

हिन्दी ग़ज़ल में समसामयिक चेतना के स्वर


Author(s): भुवनेश कुमार परिहार

Abstract:
हिन्दी ग़ज़ल किसी परिचय की मोहताज नहीं है, वह युगीन चेतना को प्रकट करने में सर्वाधिक सफल साहित्यिक विधा है। यह युगीन दृष्टिकोण को प्रस्तुत करती हुई मानव जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं को ईमानदारी से व्यक्त करती है। किसी भी साहित्य में अपने युग की सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक एवं आर्थिक जड़े देखी जा सकती है। ‘समसामयिक‘ शब्द हिन्दी भाषा में ‘समकालीन‘ शब्द का विषेषण है, जिसका अर्थ है- वर्तमानकालीक या आज के युग की समझ रखना। समकालीन साहित्य चेतना या जागृति का सषक्त माध्यम है। समाज में नये विचार एवं नयी सोच के प्रस्फुटन से ही नयी चेतना का विकास होता है, इसी कारण साहित्य में चेतना का विषेष महत्व है। चेतना के अनेक विषय और क्षेत्र होते हैं, जिनमें प्रमुख क्षेत्र हैं- सामाजिक चेतना, व्यक्तिवादी चेतना, धार्मिक चेतना, नारी चेतना, राष्ट्रीय चेतना, सांस्कृतिक चेतना, राजनीतिक चेतना, आर्थिक चेतना, मानवीय चेतना। हिन्दी ग़ज़ल समृद्ध एवं स्वस्थ समाज के निर्माण की संकल्पना के साथ ही समाज मंे मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना का सशक्त एवं सार्थक प्रयास कर रही है। आधुनिक भाव बोध एवं समसामयिक संघर्ष चेतना से अभिप्रेत इन ग़ज़लों में वर्तमान भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ लड़ने एवं संघर्ष करने की प्रेरणा भी अभिव्यक्त है। ये ग़ज़लें आज के संघर्षरत मानव में आशावादी चेतना का प्रसार करती है।


DOI: 10.33545/27068919.2020.v2.i4d.982

Pages: 255-258 | Views: 283 | Downloads: 85

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How to cite this article:
भुवनेश कुमार परिहार. हिन्दी ग़ज़ल में समसामयिक चेतना के स्वर. Int J Adv Acad Stud 2020;2(4):255-258. DOI: 10.33545/27068919.2020.v2.i4d.982
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