तेजपाल सिंह ‘तेज‘ की साहित्यिक चेतना
Author(s): डॉ. देवी प्रसाद
Abstract: मान्यता है कि रचना में कल्पना का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इस बात से इंकार तो नहीं किया जा सकता परन्तु रचना हमेशा ही कल्पना पर आधारित हो, यह जरूरी नहीं है। तेजपाल सिंह ‘तेज‘ के साहित्य का अनुशीलन करने पर पाते हैं कि उनके गीत, गजल, कविताएं व गद्य रचनाएं कल्पना की देन न होकर यथार्थ से उपजी हैं। तेजपाल सिंह ‘तेज‘ की रचना-प्रक्रिया की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह नित्य प्रति नवीन विषय प्रतिपादित करती चलती है। आधुनिक काल में काव्य का विषय क्षेत्र व्यापक हो गया है। पाश्चात्य सभ्यता का अंधा अनुकरण, समाज के उच्च वर्ग की स्वार्थपरता, धार्मिक मिथ्याचारण, पाखंड, सामाजिक भेदभाव, आर्थिक शोषण, भुखमरी, बेरोजगारी राजनीतिक भ्रष्टाचार, बाल अपराध, यौन कुंठा, हताशा और कुरीतियाँ इत्यादि, जीवन का कोई भी क्षेत्र साहित्य की परिधि से बाहर हो ही नहीं सकता। तेजपाल सिंह ‘तेज‘ ने खेतों और मिलों में काम करने वाले श्रमिक मजदूर, जाति-पाँति और ऊँच-नीच के नाम पर आर्थिक, मानसिक एवं सामाजिक शोषण के शिकार अछूत एवं पिछड़ी जाति के लोगों की समस्याओं का चित्रण बहुत ही प्रभावपूर्ण और यथार्थपरक ढ़ंग से किया है। इनके साहित्य में दलित, पीड़ित, शोषित व्यक्ति की सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक और जातीय समस्याओं को संवेदना पूर्ण ढंग से चित्रण किया गया है।
DOI: 10.33545/27068919.2020.v2.i4d.981Pages: 251-254 | Views: 336 | Downloads: 90Download Full Article: Click Here