International Journal of Advanced Academic Studies
2020, Vol. 2, Issue 4, Part D
मिथिला की लोकगाथाओं में शौर्य और श्रृंगार
Author(s): भागिरथ चौधरी
Abstract: साहित्य में लोककथाओं का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। लोककथाएँ हमारी सांस्कृति के साथ-साथ पे्रम, शंृगार, शौय आदि को भी उद्भासित करती है। लोकगाथाओं में गोपीचंद और नैका बनिजारा की गाथा को छोड़ शेष गाथाओं के नायकों का शौर्य जन कल्याण की भावना तथा मंगलमय कामना के रूप में प्रस्फुटित है। गाथाओं के नायक गण में सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया की भावना ही शौर्य रूप में दृष्टिगोचर होेता है। वहीं गाथाओं की नायिकाएॅ अपने सुन्दर चरित्र तथा प्राकृतिक सौन्दर्य में ही मोहक और आर्कषक दिख पड़ती हैं। वह भारतीय परम्पराओं का मर्यादा पूर्वक पालन करती हुई सीमा के अंदर ही रहती हैं। समय आने पर वह अपने प्रभुत्व से देवताओं को भी झूका देती हैं। इस तरह यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि मिथिला की लोकगाथाओं में वर्णित शौर्य और शंृगार वर्तमान और भविष्य के लिए संबल और पाथेय सिद्ध हो सकता है।