पूर्व मध्यकालीन भारत में धार्मिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमिः एक समीक्षा
Author(s): डाॅ॰ नरेश राम
Abstract: भारत में प्राचीन काल से ही अनेकानेक संप्रदायों, उपसंप्रदायों तथा धार्मिक मत-मतांतरों का उद्भव तथा विकास होता रहा है। इसमें से लगभग सभी संप्रदायों के मूल तत्त्व पर्याप्त प्राचीन काल तक जाते है। हड़प्पा तथा वैदिक परंपराओं के अतिरिक्त अनेक आदिम विष्वासी तथा कृत्यों द्वारा सिद्ध हो चुका है कि अनेक प्रकार के आचार-विचार, ब्राह्मण-धर्म अथवा हिंदू धर्म में विद्यमान रहे है। यद्यपि हमारा सर्वेक्षण काल धार्मिक दृष्टि से पर्याप्त महत्वपूर्ण रहा है तथापि हम उन्हीं तथ्यों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करेंगे जो इस काल में विकसित हुए अथवा जिन्होंने समाज तथा संस्कृति को विषेष रूप से प्रभावित किया है।
पूर्व मध्ययुगीन भारत में धार्मिक विकास की प्रक्रिया, पूर्व की शताब्दियों की कड़ी प्रतीत होती है, जिसकी पुर्रयना धार्मिक ग्रंथों, अभिलेखों, वास्तुकला और प्रतिमाओं के अवषेषों के आधार पर की जा सकती है। लोकप्रिय स्तर पर, मंदिरों में भक्ति उपासना और तीर्थाटन को प्रमुखता मिली। षिव, शक्ति और विष्णु से जुडे सम्प्रदाय अत्यधिक महत्त्वपूर्ण बन चुके थे। तांत्रिक उपासना पद्धति का प्रभाव हिंदू, बौद्ध और कुछ हद तक जैन परमपराओं पर भी पड़ रहा था। जहां हिंदू सम्प्रदाय संपूर्ण उपमहाद्वीप में फैले हुए थे, बौद्ध तथा जैन धर्म कुछ विषेष क्षेत्रों में संकुचित कहे जा सकते है। जैन धर्म का पष्चिम भारत और कर्नाटक में मजबूत पकड़ बना रहा, वहीं बौद्ध धर्म का सर्वाधिक प्रभाव पूर्वी भारत और कष्मीर पर रहा। प्राचीन नाग सम्प्रदायों का अस्तित्व कष्मीर के नीलमत नाग सम्प्रदाय जैसे रूप में देखा जा सकता है।
DOI: 10.33545/27068919.2020.v2.i4d.352Pages: 203-207 | Views: 4833 | Downloads: 1178Download Full Article: Click Here
How to cite this article:
डाॅ॰ नरेश राम.
पूर्व मध्यकालीन भारत में धार्मिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमिः एक समीक्षा. Int J Adv Acad Stud 2020;2(4):203-207. DOI:
10.33545/27068919.2020.v2.i4d.352