Abstract: उपन्यासक छओ प्रमुख भेद मे दोसर प्रमुख तत्व थीक, ‘चरित्र-चित्रण’। वेकन उपन्यासकें गद्यमय कल्पित आख्यान द्वारा जीवनक व्याख्या मानैत छथि। कथा मे चरित्रक कोनो अंश मात्रक झलक भेटैत अछि। उपन्यासक महत्व सम्पूर्ण चित्रक उदघाटन मे रहैत अछि। उत्म उपन्यास कोनो कल्पित व्यक्तिक जीवनी होइत अछि। जखन ओकर जीवनी पूर्ण भए जाइत अछि। तखन ओ स्रष्टा सदृश यथार्थ बनि जाइत अछि। उपन्यासकार वस्तु जगत सँ आवश्यकता अनुसार सामग्री ग्रहण करैत अछि।