Abstract: हमारे समाज में जब कभी भी महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा या अपराधों की बात उठती है तो एक तस्वीर उभर कर आती है, घर में पति के हाथों पिटती हुई महिला या फिर दहेज के लिए जला दी गई औरत जोकि आजकल प्रतिदिन अखबारों में पढ़ने को मिलता है। लोग इन तस्वीरों को देखने के इतने आदी हो गए हैं कि उसकी कोई प्रतिक्रिया ही नहीं होती। सच्चाई यह है कि इन दो तस्वीरों के अलावा महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा के कितने ही अन्य और रूप हैं। ऐसा कहने का यह मतलब नहीं कि इन दो भयानक रूपों की गंभीरता किसी तरह से कम है बल्कि इसे पूरी समस्या के ओर छोर नापने की कोशिश करना है। हिंसा के इस पूरे वातावरण पर नजर डाले तो मालूम होता है कि महिलाएँ जन्म के पहले से ही हिंसा के दायरे में आ जाती हैं।