Abstract: अतीत आ भविष्यक संग सम्बन्ध स्थापित क’कए साहित्य अपन अस्तित्वक सत्यताक उद्घोषणा करैछ। विश्व-मानव उत्यन्त उत्सुकतापूर्वक साहित्यक गवीक्ष सँ अतीतक गिरि मह्यरक गुफा मे प्रवाहित जीवन-धाराक अवलोकन करैछ आ अपन गम्भीरतम उद्देश्यक विविध प्रकारक साधन, भूल आ संशोधन द्वारा प्राप्त करैत अपन भावी-जीवन कें सिंचित होइत देखबाक उत्कट अभिलाषा रखैछ अतीतक प्रेरणा आ भविष्यक चेतना नहि सँ साहित्य नहि। अतीत, वर्तमान आ भविष्यक कड़ीक अनन्त शंृखलाक रूप मे भावक सृष्टि होइत चल जाइव आ मानव अपन प्रगति क नियामादि, सिद्धांतादि कें अपन वास्तविक सत्ता का विकासक मंगल कंगन पहिरि क’ अपन दूनू हाथसँ आवृत्त कयने रहैछ, विश्वकवि रवीन्द्र नाथ ठाकुर (1861-1941) क कथन छनि जे विश्व-मानवक विराट-जीवन साहित्य द्वारा आत्म प्रकाश करैछ। एहन साहित्यक ओकलनक तातर्य काव्यकार एवं मद्यकारक जीवनी, भाषा तथा पाठ सम्बन्धी अध्ययन तथा साहित्यक विधि विधादिक अध्ययन करने मात्र नहि, प्रत्युत ओकर सम्बन्ध संस्कृतिक इतिहास सँ अछि, मानव मन सँ, सभ्यताक इतिहास मे साहित्य द्वारा सुरक्षित मन सँ अछि।