नाट्य विधायें एवं उनका स्वरूप
Author(s): आदित्य प्रकाश
Abstract: नाटक को काव्य का ही एक रूप माना जाता है। जो केवल श्रवण द्वारा ही नहीं बल्कि दृष्य रूप में भी मनुष्यों के हृदय में रसानुभूति कराती है।
पहली हिन्दी नाटक “नहुष” को माना जाता है। जिसकी रचना काल 1857 ई० तथा लेखक गोपाल चन्द्र गिरीधर थे।
काव्य के दो भेद माने गये है। i) दृष्य काव्य ii) श्रव्य काव्य।
दृश्य काव्य के भी दो रूप है। i) रूपक ii) उपरूपक नाटक।
अभिनय किसी भी नाटक के सभी अंगों का मूल्य तत्व है। यह नाटक का वह गुण है। जो दर्शक को अपनी ओर आकर्षित करती है।
एक सफल नाटकार को रंगमंच के सभी पहलुओं पर चिंतन अतिआवश्यक है।
भारतीय परम्परा अनुसार वस्तु, अभिनेता एवं रस को नाटक का आवश्यक अंग माना गया है। इस प्रकार नाटक के 7 अंश है। जो इस प्रकार है– i) कथावस्तु ii) अभिनेता iii) रस iv) कथोपकथन v) देशकाल vi) उद्देश्य vii) शैलि।
हिन्दी साहित्य के नाटकों का प्रारम्भ भारतेन्दुयुग को माना जाता है। जिन्होने अपने पिता गोपाल चन्द्र गिरीधर दास कृत “नहुष” को हिन्दी का प्रथम नाटक स्वीकारा है।
DOI: 10.33545/27068919.2019.v1.i2c.978Pages: 261-264 | Views: 356 | Downloads: 110Download Full Article: Click Here