Abstract: भारत की विभिन्न जनजातियों द्वारा समय-समय पर किये गये आन्दोलनों में उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में छोटानागपुर के मुंडाओं द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध छेड़े गये प्रतिरोध-आन्दोलन का विशिष्ट स्थान है। भूमि-व्यवस्था के बिखराव और संस्कृति परिवर्तन की दुहरी चुनौतियों की प्रतिक्रिया स्वरूप 1775 से 1831-32 ई० तक मुंडाओं के अनेक आन्दोलन हुए। 1831-32 ई० का कोल-विद्रोह और 1832-33 ई० का भूमिज-विद्रोह जिन भूमि-समस्याओं और पुराने मुद्दों को लेकर हुए थे उनका इन विद्रोहों के बाद भी अंत नहीं हुआ था। सरकार और रैयतों के बीच से जिन बिचैलियों को हटाने के लिए ये दोनों आन्दोलन हुए थे वे फिर वापस आ गए थे और उन्होंने आदिवासियों से खुलकर बदला लिया। भूमि-व्यवस्था के विघटन की प्रक्रिया पहले की ही तरह चलती रही। आदिवासियों की जमीन छीनी जाती रही। अपनी जमीन से वंचित आदिवासी भग खड़े होने को विवश होते रहे। कोल-विद्रोह के समय जो आदिवासी भाग गए थे उनकी जमीन दूसरे लोगों ने हथिया ली थी। कुछ वर्ष बाद जब आदिवासी वापस आए तो जमीन के नए मालिकों ने उन्हें जमीन लौटाने से इन्कार कर दिया। अपनी जमीन से भगाए गए इन्हीं आदिवासियों ने सरदार आन्दोलन की नींव डाली।