International Journal of Advanced Academic Studies
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2019, Vol. 1, Issue 2, Part C

‘सर्वंसहा’ में अभिव्यक्त नारी विषयक विचार


Author(s): डाॅ. भारती निश्छल

Abstract:
‘सर्वंसहा’ आत्मसंभाष शैली में रचित एक विचार-काव्य है, जिसमें पात्र और घटना-रूपी दो तीलियों के माध्यम से कथा को विचार-कथा का आकार दिया गया है। इसमें अर्थ, धर्म, राजनीति और चरित्र की तरह नारी के प्रति भी कवि की दृष्टि मुखरित हुई है।
कवि डाॅ॰ पाठक के अनुसार, छोटे-बड़े, ब्राह्मण-शूद्र आदि भेदों की तरह स्त्री-पुरुष के प्रति भेद-दृष्टि भी सामन्ती व्यवस्था की देन है, सामाजिक व्यवस्था की उपज है। कृतयुग की महिला परवर्ती युगों में किस प्रकार अबला और दासी होती गयी, क्रय-विक्रय और हरण-वरण की पात्र बन गयी, इसका तर्कपूर्ण विवेचन कवि ने प्रस्तुत किया है। कवि की दृष्टि में पुरुष की तुलना में नारी हमेशा श्रेष्ठ रही है। पुरुष मैत्री की मर्यादा का भंजक रहा है, जबकि स्त्री मैत्री-स्थापन में मुख्य भूमिका निभाती रही है। पुरुष स्त्री पर संदेह और लांछल लगाता रहा है, जबकि स्त्री सहनशीलता की सीमा तक प्रतिवाद से प्रायः पृथक् रहती आयी है। कृति के अवलोकन से स्पष्ट है कि डाॅ॰ पाठक की नारी-दृष्टि महात्मा गाँधी, विनोबा भावे और डाॅ॰ राम मनोहर लोहिया के विचारों से प्रभावित और अनुप्राणित है।


DOI: 10.33545/27068919.2019.v1.i2c.298

Pages: 200-202 | Views: 749 | Downloads: 309

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How to cite this article:
डाॅ. भारती निश्छल. ‘सर्वंसहा’ में अभिव्यक्त नारी विषयक विचार. Int J Adv Acad Stud 2019;1(2):200-202. DOI: 10.33545/27068919.2019.v1.i2c.298
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