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2019, Vol. 1, Issue 1, Part A


प्रसाद के नाटकों की प्रासंगिकता


Author(s): मुकेश कुमार महतो

Abstract: ‘मैं किसी नाटक के संबंध में पूछता हूँ, प्रथम, नाटकीय प्रश्न, दारुशिल्पी का प्रश्न-इसकी तत्वात्मक शक्ति क्या है? यह शक्ति किस प्रकार निर्मक्त की जा सकती है? द्वितीय, मानवीय प्रश्न-जाति की उत्तरजीविता के लिए इसकी मूलभूत प्रासंगिकता क्या है?’ यह विचार है प्रसिद्ध अमरीकी नाटककार आर्थर मिलर का। नाट्यालोचन के लिए दोनों ही प्रश्न अनिवार्य एवं महत्वपूर्ण हैं। इन प्रश्नों के क्रम के संबंध में मतभेद हो सकता है। जातीय जीवन के लिए रचना विशेष की प्रासंगिकता ही उसके तत्वात्मक विश्लेषण एवं अध्ययन को सार्थकता प्रदान करती है, इस दृष्टि से प्रासंगिकता के प्रश्न को पहले उठाया जा सकता है। प्रसाद के नाटकों के स्थापत्यविवेचन के पूर्व इस प्रश्न पर विचार कर लेना उचित होगा कि हमारे वर्तमान एवं भविष्य के संदर्भ में प्रसाद के नाटक कहाँ तक प्रासंगिक हैं।

DOI: 10.33545/27068919.2019.v1.i1a.459

Pages: 210-212 | Views: 4808 | Downloads: 4124

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How to cite this article:
मुकेश कुमार महतो. प्रसाद के नाटकों की प्रासंगिकता. Int J Adv Acad Stud 2019;1(1):210-212. DOI: 10.33545/27068919.2019.v1.i1a.459
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