2019, Vol. 1, Issue 1, Part A
प्रेम का स्वरूप और कालिदास
Author(s): प्रशांत कुमार
Abstract: भारत अथवा अन्य राष्ट्र में प्रेम को सर्वाधिक अध्ययन किया जाता है, ऐसा प्रमाण हमें उपलब्ध नहीं होता। यद्यपि वैदिक संहिताओं में प्रेम-सूक्त या किसी अन्य नाम से भी एतद् विषयक सूक्त प्राप्त नहीं होता। तथापि, उनमें प्रेम विषयक अनेक शब्दों का प्रयोग किया गया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वैदिक युग में युग के विभिन्न स्वरूपों की भाव-भंगिमाओं वर्णन किया गया है। जिसे यह प्रतीत होता है कि ज्ञान उस समय के समाज को अवश्य उपलब्ध था। ऋग्वेद में भी प्रयुक्त प्रेम सौन्दर्य के पर्यायवाची शब्दों का उल्लेख किया गया है, जिसे जर्मन विद्वानों-ओल्डेन वर्ग एवं पिशेल ने एक संकलन में इस प्रकार बतया है। यथा-श्री, वयुः, पेश्स, अप्सस, श्रियः, वल्गुः, भद्र, प्रिय, रूपि, लावण्य इत्यादी। ऋग्वेद ऋषि स्वंय की आन्तरिक प्रेरणाओं से शासित होकर प्रेम के सौन्दर्य-स्वरूप को अभिव्यक्त किया गया है। दर्शन एवं उसकी अभिव्यक्ति करते थे।
DOI: 10.33545/27068919.2019.v1.i1a.419Pages: 203-206 | Views: 1894 | Downloads: 1284Download Full Article: Click Here