2019, Vol. 1, Issue 1, Part A
सर्वोदय दर्शन: एक समीक्षा
Author(s): डाॅ. प्रतिमा कुमारी
Abstract: सर्वोदय गांधी दर्शन का एक ऐसा महत्वपूर्ण पक्ष है जो उसके विचारों की तात्विक व आध्यात्मिक आस्था को भावी समाज की संरचना और मानव कल्याण की धारणा के साथ जोड़ता है। गांधी की सर्वोदय की धारणा गांधीय चिंतन की वैचारिक आस्थाओं, सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया व स्वरूप राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक व नैतिक व्यवस्थाओं के आदर्श प्रतिमान आदि को साथ प्रस्थापित करती है। गांधी के सर्वोदय की धारणा एक सम्पूर्ण व्यवस्था का प्रतिमान प्रस्तुत करती है। इस प्रतिमान का मूल्यांकन किसी पूर्वाग्रहग्रस्त सामान्य टिप्पणी की नहीं, अपितु गंभीर व तटस्थ गवेषण की अपेक्षा करता है।
सर्वोदय वस्तुतः गांधीय तत्व ज्ञान का रूपांतरण है। शब्दार्थ के आधार पर सर्वोदय एक ऐसी स्थिति का संकेत करता है। जिसमें सबसे कल्याण को एक साथ सुनिश्चित करने सर्वोदयी आग्रह राजनीतिक दर्शन का एक विलक्षण प्रयोग है। वस्तुतः राजनीतिक चिन्तन की कोई भी धारा मानवीय हितों की एकरूपता के उस स्तर की कल्पना नहीं करती, जहाँ सबके हितों के मध्य समस्त प्रकार के टकराव विलीन हो जाये। सर्वोदय चिन्तन के उस स्तर को व्यक्त करता है, जहाँ मानव मात्र के हितों के मध्य एक अनिवार्य एकरूपता और विलक्षण अद्वैत स्थापित हो जाता है। सर्वोदय कल्याण के नैतिक और आध्यात्मिक संदर्भो के प्रति समर्पित है और इस कारण वह सत्य के एकाकार हो जाने को उदय का उत्कर्ष मानता है।
DOI: 10.33545/27068919.2019.v1.i1a.381Pages: 181-185 | Views: 3175 | Downloads: 2421Download Full Article: Click Here