2019, Vol. 1, Issue 1, Part A
तुलसीदास रचित दोहावली में कलियुगी परिवेश का वर्णन
Author(s): संगीता कुमारी झा
Abstract: तुलसीदास की रचनाओं में लोकमंगल का जो भाव विद्यमान है वह उनकी सामाजिक सांस्कृतिक दृष्टि से उद्भूत है। जिस समाज में शास्त्रज्ञों, विद्वानों, अन्या-अत्याचार के दमन में तत्पर वीरों, कर्तव्यपालन करने वाले महापुरुषों, स्वामी की सेवा में मर-मिटने वाले सच्चे सेवकों प्रजा का पुत्रवत पालन करने वाले शासकों के प्रति श्रद्धा और प्रेम का भाव समाप्त हो जाएगा, उस समाज का कल्याण कैसे होगा? इन्हीं भावों को ध्यान में रखकर कलियुग के रूप में गोस्वामी ने अपने मानस, कवितावली, बरवै,दोहावली, ‘गीतावली’ आदि में राज्य और समाज का चित्रण किया है।
‘दोहावली’ में अपने समय की परिस्थितियों का वर्णन किया है, साथ ही कलियुगीन वातावरण पूर्व अनुमान को भी दर्षाया है। कलयुगी समय की धार्मिक, सामाजिक सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनैतिक परिस्थितियों का सुन्दर वर्णन दोहावली में किया गया है। दोहावली में कलयुग-वर्णन में जीवन-संघर्ष, धर्म दंभ युक्त, कपट व्यवहार क्षुद्र स्वार्थ की पूर्ति आदि ऐसे अनेको प्रवृति का संकेत दिया गया है।
DOI: 10.33545/27068919.2019.v1.i1a.371Pages: 170-171 | Views: 4205 | Downloads: 3530Download Full Article: Click Here
How to cite this article:
संगीता कुमारी झा.
तुलसीदास रचित दोहावली में कलियुगी परिवेश का वर्णन. Int J Adv Acad Stud 2019;1(1):170-171. DOI:
10.33545/27068919.2019.v1.i1a.371